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________________ ६६४ बंधित्तए-बहिया बंधित्तए । बद्धम् ] रा० ७७४ बलदेव बलदेव ओ०७१. जी. ३१७६५,८४१ बंधित्ता [ बद्ध्वा] रा० ७५ बलव बलवत् ] ओ० १४. रा० १२,६७१,७५८, बंधुजीवगगुम्भ [बन्धुजीवकगुल्म जी० ३।५८० ७५६. ३।११८,११६ बंभ ब्रहान् ओ० २५.५१,१६२. २०६८६. बलवाउय बलामृत ओ० ५५ से६३ जी० ३।१०४६,१०६६,१०८८,१०६४,१११० बलसंपण्ण ल 'म्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ बंभचेर बहाचर्य ] जी. ३६EE बलागा | बजाका रा० २६ बंभचेरवास | ब्रह्मचर्यवा] ओ० १५४,१६५,१६६. बलाया बल का | जी० ३१२८२ ___ रा० ८१६ बलाभिओग [बलाभियोग] ओ० १०१,१२४ बंभण्णय ब्राह्मण्यक] ओ०६७ बलाहक बला क] जी० ३१७८५,७८६,८४१ बंभदत्त [ बहादत्त जी० ३।११७ बलाय [बलाहक ] 21० २६. जी० ३।२८२ बंभलोग ब्रह्मलोक जी० ३११०७६ बलि [बलि! जी० ३।२४० से २४३ बंभलोय [ब्रह्मलोक ] ओ० ११०,११७,१४०. बलिकम्म [बलि कर्मन् ओ० २०,५२,५३,७०. जी० २।१४८,१४६; ३११०३८,१०५६,११०२ रा०६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, Vबज्झ बन्ध ---बज्झती. ओ०७४|४ ७१०,७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४, बत्तीस | द्वात्रिंशत् ] ओ० ३३. रा० १२४. ७६४,८०२,८०५ जी० ३१५ बलिपीढ बलिपीठ] रा० २७२,२७३,६५४. जी० बत्तीसगुण [द्वात्रिंशद्गुण] जी० २।१५१ ३४३७,४३८,५५४,५५६ बत्तीसइबद्ध [द्वात्रिंशद्बद्ध] रा० ७३,११८ बलिविसज्जण | बलिविसर्जन] रा० ६५४. जी. ३३५५६ बत्तीसइबद्धय [द्वात्रिंशद्बद्धक] रा० ७१०,७७४ बत्तीसतिबद्ध [द्वात्रिंशद्बद्ध] रा०६३,६५ बल्लकी । बल्लका । रा० ७७ बहली बालो ओ० ७०. रा० ८०४ बत्तीसिया [द्वात्रिशिका | रा० ७७२ बहब बहु] अं० १२,१७,२३,४७ से ५२. रा० बद्ध बद्ध आ० ५.८,५७. रा० १३२,२३५,६६४, १६,१७,२२,२३,५४,५५,७१ से ७५,७६ से ६८३,७५४,७५६,७६४,७७१,७७४. ८१,८३,११२ से ११८,१३२,१५३,१६७,१६८, जी० ३।२२,१७४,२७४,३०२,३२६,३६७,५६२ १७८ से १८०,१८२,१८४,१८५,१८७,१९२ बद्धग | बद्धक] रा० ७७ से १६४,१६६,२३५,२३६,२४०,२४६,२८०, बद्धीसा बध्वीसा] रा० ७७ २८२, २८६, ६८७ से ६८६.६६५,७०३, बफ बाष्प] जी० ३१५६२ ७०४. जी० ३८७,२१७,३४८,३५८, ३५६, बब्बरिया बर्बरिका] रा० ८०४ ३६७,३६७,३६८,४०२,४१०,४११,४२०, बब्बरी ! बर्बरी | ओ० ७० ४४६,४४८,४५५,४५६,५७६ से ५८३ ५८६ से बरहिण बनि ओ० ६. जी० ३।२७४ ५६५,६४०,७०२,७२४,७२६,७२७,७२६, बल [बल] आ०२३,६७,७१,८४ से ६६,११४, ७८५ ते ७८७,८०७,८२६,८४१,८५७,६०२, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. ६१७,१०३०,१०३६,१०८१ ग० १२,१३,६१,६५७,६७४,६६५,७५८,७५६, बहिब रा० १३०. जी० ३।३०० ७८७,७८ १,७६०,७६१ जी० ३।११८,४४६, बहिया बहिस्,बहिस्तात् ] ०२. रा०२. जी० ५८६,५६२ ३८३८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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