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________________ काय-कालमेह काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,९२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी०६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३.१२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३,९०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा०८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,८३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन् ] जी० १३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६, ६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७,४३,५,८,१६,१७; १२० ५।५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०, ७।२; कायट्ठिति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६।७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायव्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३॥१२७; कालओ [कालतस्] ओ० २८. रा० २००. ४६ जी० ॥३३,१३६,१४०; २।४८,४६,५४,५७ कायविणय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३२२७२, ४१७ से ११,०८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ ६,१२ से १६,२३,२६६८७६१०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७.५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८६,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण [कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १३२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिय कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ० ६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२८५ जी० ३१३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस्] जी० २०८४,११७ से १२०, कारोडिय [कारोटिक] ओ० ६८ १२२ से १२४; ३३५६,१६३,१६४,११३३ से ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] ओ० १,१८,२३ से २५,२७,२८,४५, कालधम्म [कालधर्म] रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से १५,११४,११७, कालपोर [दे० कालपर्वन्] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ०८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५,६६६, ११७,१४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी० ३।११७, ७७१,७९६,७९८,८१५. जी० १५,३४,३५, ५०,५२,६६,१२७,१३७ से १४२, २०२० से. कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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