SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 675
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९८ कवाड-काय कवाड [कपाट] ओ० १,१७४. रा० १३०. जी० । काइय [कायिक] ओ० ६६ ३।३०० काउं [कृत्वा] ओ० १३७ कविट्ठ [कपित्थ] जी० ११७२ काउंबरीय [काकोदुम्बरिका] जी० ११७२ कवियच्छू [कपिकच्छ्] जी० ३।८५ फाउलेस [कापोतलेश्य] जी० ६।१६३ कविल [कपिल] ओ० ६. जी० ३।२७५ काउलेसा [कापोतलेश्या] जी० ६६८,६६ कविसीसग [कपिशीर्षक] ओ० १. रा० १२८. काउलेस्स [कापोतलेश्य] जी० ६।१८५,१८८,१६६ जी० ३।३५३ काउलेस्सा [कापोतलेश्या] जी० ११२१ कविसीसय [कपिशीर्षक] रा० १२८. जी० ३।३५३ काऊ [कापोती] जी० ३७७ कविहसिय [कपिहसित] जी० ३।६२६ काकणिलक्खण [काकिणीलक्षण] ओ० १४६ कवेल्लुयावाय [कवेल्लुकापाक ] जी० ३३११८ कागणिलक्खण [काकिणीलक्षण] रा० ८०६ कवोत [कपोत] जी० ३३५६८ कागणिमंसक्खावियग [काकिणीमांसखादितक] ओ०६० कवोल [कपोल] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६,५६७ काणण [कानन] रा० ६५४,६५५. जी० ३१५५४ कापिसायण [कापिशायन] जी० ३।८६० कसाय [कषाय ] ओ०४४,४६. जी. ११५,१४, काम [काम] ओ०१५,४३,१४६,१५०,१६८ १६,८६,६६,१०१,११६,१२८,१३६; ३।२२; रा०६७२,६८५,७१०,७५१,७५३,७७४,७६१, ६।६६ कसायपडिसंलोणया [कषायप्रतिसंलीनता] ८११. जी० ३।१७६,११२४ ओ० ३६ कामकंत [कामकान्त] जी० ३।१७६ कसायविउस्सग्ग [कषायव्युत्सर्ग] ओ० ४४ कामकूड [कामकूट] जी० ३३१७६ कसायसमुग्धाय [कषायसमुद्घात] जी० १।२३, कामगम [कामकम] ओ० ४६,५१ ८५३।१०८,१११२,१११३ कामगामि [कामकामिन्] जी० ३३५६८,६०६ कसिण [कृष्ण] ओ० १६,४७. जी० ३।५९६,५६७ काममय [कामध्वज] जी० ३।१७६ कसिण [कृत्सन] ओ० १५३,१६५,१६६. कामस्थिय [कामार्थिक ] ओ०६८ रा० ८१४ कामप्पभ [कामप्रभ] जी० ३३१७६ कह [कथय]-कहंति. ओ० ४५- कहेइ. कामरय [कामरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ रा० ६६३ कामरूवषारि [कामरूपधारिन्] ओ० ४६ कह [कथम् ] ओ० ११८. रा० ७०३. कामलेस्स [कामलेश्य] जी० ३।१७६ जी० ३।२११ कामवण्ण [कामवर्ण] जी० ३३१७६ कहकहभूत [कहकहभूत ] रा० ७८ कामसिंग [कामशृङ्ग] जी० ३३१७६ कहग [कयक] ओ० १,२ कामसिट्ट [कामशिष्ट ] जी० ३।१७९ कहगपेच्छा [कथकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५. कामावत [कामावर्त] जी० ३।१७६ जी० ३।६१६ कामुत्तरडिसय [कामावतंसक] जी० ३११७६ कहा [कथा] ओ० २०,४५,५३. रा० ७१३ काय [काय] ओ० २४. रा० १४६,८१५. कहि [क्व] जी० १३१२७. ___ जी० ३।११०,१११,१७४; ६६६ कहिं [क्व, कुत्र] ओ० १४०. रा० १२२. काय [काचय] -कायावेमि रा० ७५४ जी० ११५४ काय [पाय] [काचपात्र] ओ० १०५.१२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy