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________________ उक्कोसपद-उच्छलंत ५७६ से १४०,१४२; २।२० से २२,२४ से ५०, उग्गत [ उद्गत ] जी० ३।३००,५६५ ५३, से ६१,६३,६५ से ६७, ७३,७६,८२ से उगतव [ उग्रतपस् ] ओ० ८२ ८४,८६ से ८८,६० से ६३,६७ १०० से १११, उग्गपुत्त [उग्रपुत्र ] ओ ० ५२. रा० ६८७ से ६८६, ११३,११४,११६ से १३३,१३६; ३८६,८६, ६१,१०७,११८ से १२०,१२६।२,१३६,१६१, उग्गमणुग्गमणपविभत्ति [उद्गमनोद्गमनप्रविभक्ति | १६२,१६५,१७६,१७८,१८०,१५२,१८६ से रा०८६ १६२.२१८,६२६,८४४,८४७,८६०,६६६, उग्गय [ उद्गत रा० १७,१८,२०,३२,१२६. १०२२,१०२७ से १०३६,१०८३,१०८४, जी० ३।२८८,३७२,५६० १०८७,१०८६,११११,११३१,११३२,११३४ उग्गलच्छाव [दे०]--उग्गलच्छामि रा०७५४ से ११३७; ४१३ से ११,१६.१७; ५।५,७,८, उग्गलच्छाविता [दे०] रा० ७५४ १० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६।२,३, उग्गह [अवग्रह ] रा० ७४०,७४१ ६,८ से ११; ७।३, ५.६,१०,१२ से १८; . उग्धोसेमाण [उद्घोषयत् ] रा० १३,१५ ६।२ से ४,२३ से२६,३१,३३,३४,३६,४०,४१, उच्च [उच्च ] जी ० ३।३१३ ४३,४७,४६,५१,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, उच्चंतग [उच्चन्तक] रा० २६. जी. ३१२७६ ७७,७८,८०,८३,८५,८६,६०,६२,६३,६६,६७, उच्चत्त [उच्चत्व] ओ० १८७. रा० ४०,१२७ से १०२,१०३,१०५,१०६,११४,११५,११७,११८, १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२,२२२, १२३ से १२८,१३२,१३४,१३६,१३८,१४२, २२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३. १४४,१४६,१४६,१५०,१५२,१५३,१६० से जी०३।१२७,२६१ से २६३,३००,३०७, १६२,१६४,१६५,१७१ से १७३,१७६ से १७८) ३५२ से ३५५,३५६,३६४,३६८ से ३७४, १८६ से १६१,१६३,१६४, १९८ से २००, ३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२,४१४, २०२ से २०४,२०६,२०७,२१० से २१४, ५६६,५६७,६३२,६३४,६४६,६४७,६५२६६१. २१६ से २१८,२२२ से २२५,२२८,२२६, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, २३४,२३६,२३८,२४१ से २४४,२४६,२५७ ७३६,७३७,७५६,७६५,८३६,८८२,८८४, से २६०,२६२,२६४,२६६,२७१,२७३,२७७ ८८५,८८७,८८८,८६४,८६८,६००,६०७, स २८२ ६११,६१८,१०६७,१०६६,१०७० उक्कोसपद [उत्कर्षपद] जी० ३।१६५ से १९७ उच्चार [उच्चार] रा० ७६६ उक्कोसपय [उत्कर्षपद] जी० ३.१६५ उच्चारण [उच्चारण] ओ० १८२ उक्खित्त [उत्क्षिप्त] रा० ११५. जी० ३।४४७ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिय उक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तचरक] ओ० ३४ [उच्चारप्रस्रवणक्षवेलसिंघाणजल्लपारिष्ठापनिउक्खित्तणिक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तनिक्षिप्तचरक कीसमित ] ओ० २७,१५२,१६४. रा०८१३ ___ ओ० ३४ उच्चावय [उच्चावच] ओ० १४०,१५४,१६५, उक्खित्ताय [उत्क्षिप्तक] रा० १७३,२८१. __ १६६. रा० ७६६,८१६. जी० ३।२३६,६८२ जी० ३।२८५ उच्छंग [उत्सङ्ग] ओ०६४ उक्खु [इक्षु] जी० ३।६२१ उच्छल [उत्+शल्]-उच्छति रा० २८१. उक्खेवण [उत्क्षेपन] ओ० १८० जी० ३।४४७ उग्ग [उन] ओ २३,५२. ग० ६८७ से ६८६,६६५ उच्छलंत [उच्छलत्] ओ०४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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