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________________ ६६६ बाणगुम्म [ बाणगुल्म ] जी० ३.५८० बादर [बादर ] जी० ३३८४१; ५।२६ से ३१,३५, ५१,५२, ५८ से ६० बादरआउकाइय [बादरअप्कायिक ] जी० ५।२८ बादरणिओत [ बादरनिगोद ] जी० ५२६ बादरणिओव [ बादरनिगोद | जी० ५२८ से ३०, ४०, ४७ से ४६,५२ बावरणिओवजीव [ बादरनिगोदजीव ] जी० ५।५३. ५५, ५८ से ६० बादरतेकाइ [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ११७८, ७६ ५।२८ बादरपत्तेयवणस्स तिकाइय [ बादरप्रत्येक वनस्पतिकायिक ] जी० ५।२६ बादरपुढवि [ बादरपृथ्वी ] जी० ५।२६ बावरपुढ विकाइ [बादर पृथ्वी कार्यिक ] जी० ११५८३।१३२, १३४, ५२,३, २८ से ३० बादरनियोव | बादरनिगोद ] जी० ५५४० बादरतसकाइय [बादरत्रसकायिक | जी० ५२८ से बायरपुढवि | बादरपृथ्वी ] जी० ५।३१,३३,३५,३६ बायरपुढ विकाइ [ बादर पृथ्वीकायिक ] _३०,३३,३५ जी० १११३, ५७, ६५, ७४ ५३१, ३३, ३४,३६ बारपुढविक्काइ [बादरपृथ्वी कायिक ] जी० १२५७, ५८, ६२ बादरवणस्सइकाइय [वादरवनस्पतिकायिक ] जी ० ५।३० बादरवणस्सति [ बादरवनस्पति ] जी० ५।२६ बादरवणतिकाय [बादरवनस्पतिकायिक ] जी ० ५।२८ से ३१ बादरवाउ [ बादरवायु ] जी० ५।२६ बादरवाकाइय [बादरवायुकायिक ] जी० २८, ३० araratक्काय [बादरवायुकायिक ] जी० ११८१ बार [ बादर ] जी० १४४ ३१८४१ ५ २८, २६, ३१ से ३६, ६५, ६७,६६, १०० बायरआउकाइय [ बादरअप्कायिक ] जी० ५२८ बायरआउक्काइय [बादरअपकायिक ] जी० १४६३,६५ erry - बाल दिवाकर बायरकाल [ बादरकाल ] जी० ६६६ बायरणिओद [ बादरनिगोद ] जी० ५।३८ वायरणिओय [बाद निगोद ] जी० ५।३१,३३,३५, ३६ बायरसकाइय [ बादरत्रसकायिक ] जी० ५।३१ से ३४,३६ Jain Education International बायर उक्काइय [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ५।३१,३३,३४ बायर उक्काइ [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ११७६, ५।३३, ३४, ३६ बायरवणस्स इकाइय [ बादरवनस्पतिकायिक ] जी० १४६६,६८, ६९, ७२ से ७४ ५।३३, ३४, ३६ बायरवणस्पतिकाइय | बादरवनस्पतिकायिक ] जी० ५।३१, ३३ से ३६ बायरवाजकाइय [बादरवाबुकायिक ] जी० ५॥३४ बायरवाक्काय | बादरवायुकायिक ] जी० ११८०, ८२ बाया [द्वाचत्वारिंशत् ] जी० ३ । १०२२ बयालीस | द्वत्वारिंशत् ] ओ० १६२. जी० १।११२ बारस [ द्वादशन् ] ओ० ६० रा० ४३. जी० ११८६ बारसभत्त [ द्वादशभक्त | ओ० ३२ बारसम [ द्वादश ] रा० ८०२ बारसाह [ द्वादशाह ] ओ० १४४ बाल [बाल ] रा० २७,३१,७५८,७५६. जी० ३३२५०,२८४, ६६० से ६६७ बालतवोकम्म [ बालतपः कर्मन् ] ओ० ७३ बालदिवाकर [ बालदिवाकर ] रा० २७. जी० ३।२८० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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