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________________ ६६० ११७. रा० ४७,२७७, २८३, २८६,६५७,७३६, जी० ३१४४३, ४४६, ४५२, ५५७ पुरस्थिम [ पौरस्त्य ] रा० १६,४२,४४,१२६,१७०, २१०,२१२,२३५,२३६,२४२, ६५६. जी० ३।३००.३४०, ३४५, ३५१,३७३.३६७, ३६८, ४०४, ४४३, ४४६,५५६, ५६२, ५६८, ५७७,६३२, ६४७,६६१,६६६, ६६८,६७३, ६८२,६६४,६६७, ६६८, ७०८, ७१०, ७३६, ७३६,७६२,७६४,७६६,७६८ से ७७०,७७२, ७७३,७७७,७७६,८००,८१४,८२,८५१, ८०२,८८५६०२, ६३६, ६४४,१०१५, १०१६ पुरथिमिल्ल [ पौरस्त्य ] रा० ४७,५६,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१.२६८, ३०३, ३०८, ३१६,३२४, ३२६,३३२ से ३४३ ३४७ से ३५१,३६५, ४१४,४५४,४७४,५१५,५३४, ५७५,५६४,६३५, ६५६,६५७,६६४. जो० ३।३३ से ३५,३७,२१६.२२२, २२३, २२७,४४३,४४५,४५२, ४५४, ४५७, ४६३, ४६८, ४७३,४८४,४८६,४६४४६७ से ५०८, ५१२ से ५१६,५२५, ५२६,५३१, ५३३, ५३६, ५४०,५४६,५४७,५५३,५५६,५५७,५७७, ६६८, ६७३, ६८६,६६२,६६३,७६८,७७०, ७७२,७७४,७७६, ७७८, ६१० पुरवर [ पुरवर] ओ० १६ जी० ३१५६६ पुरा | पुरा ] रा० १८५, १८७. जी० ३।२१७, २६७,२६८,३५८,५७६ पुरिमताल [ पुरिमताल ] ओ० ११५ पुरिस [पुरुष] ओ० १४,१६,१७,१६,५२,६३,६४, १५१८.०८२८,२६२,६७१,६८१ से ६०३,६८७ से ६६१७००,७०६,७१४ से _७१६,७३२,७३५,७३७, ७५१, ७५३ से ७५६, ७५८ से ७६२,७६४, ७६५, ७६८, ७६६,७७२, ७७४,७७५, ७८७, ७८८. जी०२:१,७५ से ५, ६० से ६३,६५,६६, ६८,१४१ से १५१; Jain Education International पुरत्थिम- पुव्व ३११२७१५, १४८, १४९, १६४, ४५७ पुरिसक्कार [ पुरुषकार ] ओ० ८६ से १५, ११४, ११७,१५५ १५७ से १६०,१६२,१६७ पुरिसपुंडरीय [ पुरुषपुण्डरीक ] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिस लक्खण [ लक्षण ] ओ० १४६. रा० ८०६ पुरिसलिंग सिद्ध [ पुरुष लिङ्ग सिद्ध ] जी० ११८ पुरिसवग्ध [ पुरुषव्याघ्र ] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवर [ पुरुषवर | ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवरगंधहत्थि [ पुरुषवरगन्धहस्तिन् ] ओ० १४, १६,२१,५४. ० ८,२६२,६७१ जी० ३।४५७ पुरिसवरपुंडरीय [ पुरुषवरपुण्डरीक] ओ० १६,२१, ५४. रा०८,२६२. जी० ३।४५७ पुरिसवेद | पुरुषवेद | जी० १ १३६ : २ ६७, ६८ १२३,१२७ पुरिसवेदग [ पुरुषवेदक ] जी० ६।१३० पुरिसवे | पुरुषवेद ] जी० ११२५ पुरिसवेग [ पुरुषवेदक ] जी० ६।१२१ पुरिससीह [ पुरुषसिंह ] ओ० १४, १६, २१, ५४. रा०८, २६२, ६७१. जी० ३।४५७ पुरिसासाविस [ पुरुषाशीविष] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसुत्तम [पुरुषोत्तम ] रा०८ पुरिसोत्तम | पुरुषोत्तम] ओ० १६,२१, ५२, ५४. रा० २६२. जी० ३४५७ पुरोवग [ पुरोपग] ओ० ६, १० पुलंपुल [ दे० ] ओ० ४६ पुलग [ पुलक ] ० ८२. रा० १०,१२,१८, ६५, १६५, २७६ पुलय [ पुलक ] जी० ३।७ पुलाकिमिय | पुलाकृमिक | जी० ११८४ पुलिंदी | पुलिन्दी | ओ० ७०. रा० ८०४ पुलिण | पुलिन ] रा० २४५. जी० ३।४०७ पुव्व | पूर्व ] ओ०७२, ११६, १५६, १६७, १८२. रा० ४०, १३२,१७३,६८५,७७२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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