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________________ परिशिष्ट - १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार - स्थल निर्देश ओवाइयं संक्षिप्त पाठ अगामिया जाव अडवीए अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चैव अणते जाव केवलवरणाणदंसणे अण्णभोगेहि जाव सयणभोगेहि अपज्जवसिया जाव चिट्ठति अपsिविरया एवं जाव परिग्गहाओ अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहर, वरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंते उरघरदारपवेसी' एयं ण वुच्चई अयबंधणाणि वा जाव महद्वणमोल्लाई अवमाणए जाव से असंजए जाव एतत्ते आगमेसिभद्दा जाव पडरूवा आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी आयारधरा जाव विवागसुयधरा आवलियाए जाव अयणे इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी उदए जाव भी एक्कतीसं सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणा राहगा सेसं तं चैव एवं एवं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु एवं चैव पसत्थं भाणियव्वं १. क्वचित् - 'चियत्तघरं ते उरपवेसी' ति ( वृ ) । Jain Education International पूर्व-स्थल सूत्र ११७ १५७ १६५ १५० १८४ १६१ १२० १०६ १३७ ८५,८७ ७२ २४ ४५ २८ १५२ ११७ १६० ७३ ४० For Private & Personal Use Only पूर्ति आधार स्थल सूत्र ११६ ८६ १५३ १४६ १८३ ११७ वृत्ति, पृष्ठ १८८ १०५ १११ ८४ वृत्ति, पृष्ठ १५३ नंदी सू० २ नंदी सू० ७६ वृत्ति, पृष्ठ ६८ २७ ११६ ८६ ७३ ४० www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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