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________________ कतिविह-कम्मभूमिया १६५ कतिविह [कतिविध] जी०३।१८३,६७६,६७७%; कप्पोवग [कल्पोपग] ओ०७२ ५॥३८,३६,५३ से ५५ कम्बड [कर्बट] ओ० ६८,८६ से ६३,६५,६६, कतो [कुतस्] जी० ३८८ १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ कत्तिया [कृत्तिका] जी० ३।६३७ कम [क्रम] जी० ३१७७८,८३८:१४ कत्थ [कुत्र] ओ० १६५१ कमंडलु [कमण्डलु] जी० ३।५६७ कत्थ [कथ्य] रा० १७३. जी० ३२८५ कमल [कमल ] ओ० २१,२२,५४. रा०८,१३१, कत्थइ [कुत्रचित् ] ओ० २८ १४७,१४८,१७४,२८०,७१४,७२३,७७७,७७८, कत्थलगुम्म [कस्तुलगुल्म] जी० ३।५८० ७८८. जी० ३।११८,११६,२८६,३२१,४४६, कदंब [कदम्ब] जी० ३१५८३ ४४८,५६७ कद्दम [कर्दम जी० ३।७५१ कमलागर [कमलाकर] ओ० २२. रा० ७७७, कद्दमय [कर्दमक] जी० ३१७४८ ७७८,७८८ कद्दमोदय [कर्दमोदक ] ओ० १११ से ११३,१३७, कम्म [कर्मन् ] ओ० २६,४६,७१ से ७४१५,७६ से १३८ ८१,८६,११६,१५६,१६७,१७१,१८२,१८४, कपिहसिय [कपिहसित] जी० ३।८४१ १६५२०. रा० १८५,१८७,७५०,७५१,७७१, ७७२. जी० २.७३,६७,१३९ ३३१२६६, कप्प [कल्प] ओ० २६,६५,६५,६७,११४,११७, २१७,२६७,२६८ १४०,१५५,१५७ से १५६,१६२,१६०. कम्मंत [दे० कर्मान्त] ओ० १६१,१६३ रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. कम्मंस [कर्माश] मो० १७१,१८२ जी० २।१६,४६,६६,१४८,१४६; ३१७७५, कम्मकर [कर्मकर] ओ० ६४ ८४२,८४५,६३७,१०३६,१०५७ से १०५६, कम्मग [कर्मक] जी० ६।१७६ १०६२,१०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७७ कम्मगसरीर [कर्मकशरीर] ओ० १७६ से १०८३,१०८५ से १०८७,१०६०,१०६१, कम्मगसरीरि कर्मकशरीरिन् ] जी०६।१७०,१७४ १०९३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५, कम्मठिति [कर्मस्थिति] जी० २।७३,६७,१३६ ११०७,११०९ से १११२,१११४,१११५, कम्मणिसेग [कर्मनिषेक] जी० २।१३६ १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ कम्मणिसेय [कर्मनिषक] जी० २।७३,९७ किप्प [कृप्] - कप्पइ. ओ०६६.--कप्पंति. ओ० कम्मपयडि [कर्मप्रकृति] ओ० १६८ ६३. -कप्पेज्जा. रा० ७७६ कम्मभूमक [कर्मभूमक] जी० २।८६,१३२ कप्पणा [कल्पना] ओ० ५७ कम्मभूमग [कर्मभूमक] जी० १।१५६; २।१४,२८, कप्परक्ख [कल्परूक्ष] ओ० ६३ २६,७७,८५,९६,१०६,११५,१२३,१३८,१४७, कप्परुक्खग [कल्परूक्षक] रा० २८५ १४६; ३२१२,२२६,८३६ कप्परक्खय [कल्परक्षक] रा० ३।४५१ कम्मभूमय [कर्मभूमज] जी० २।२७ कप्पिय [कल्पित ओ० ५२,६२,६३. रा० ६८७ कम्मभूमि [कर्मभूमि] जी० २।१३७ से ६८९ कम्मभूमिग [कर्मभूमिज] जी० २१७०,७२,१३८, कप्पूर [कर्पूर] रा० ३०. जी० ३।२८३ १४७,१४६ कप्पेमाण [कल्पमान] ओ० ६१ से ६३,१६१,१६३. कम्मभूमिय [कर्मभूमिज] जी० १३१०१ रा० ६७१,७५२ कम्मभूमिया [कर्मभूमिजा] जी० २१११,१४,५५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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