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________________ १९४ कडुय-कतिविध २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कण्णवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ ६७६ कणिका [कणिका] जी० ३१३३२ कडुय [कटुक ] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० १५; कष्णिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३३२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिज्जमाण [कृष्यमान] रा० ५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कढिण [कठिन] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण] ओ० ६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय [क्वथित] जी० ३।५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० १७३ कणइर [कणवीर] जी० ३१५६७ कण्हकेसर [कृष्णकेसर] जी० ३।२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म] जी० ३१५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ० ६६ कणग [कनक] ओ० १६,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६९,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जी. ३।२८१, कण्हराई [कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी] जी० ३।६१६ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० १११३३; ३।१५० ८८५,६३६ . कण्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६।१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० ११२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३५९३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ३१२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३।१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पभ [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कतमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३।४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २।६८ से ७२,६५,६६,१३४ ८६६ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८; १५२, कणगामय [कनकमय] रा० २५४. जी० ३।३५२, ५६; ७।२०; ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति [कति] रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि ] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३।४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया [क्वणिता] जी० ३।५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,८२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३,१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कण्णपीढ [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्खुत्तो [कतिकृत्वस् ] जी० ३।७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३।५६३ कतिविष [कतिविध] जी० ३।६ से ११,३७,३८, कण्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३।६२८ १४७,१६१,१८५, ६३१; ५॥३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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