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________________ विहिय-वेउब्वियामुग्घात विहिय [विहित] ओ० १५. रा० ६७२ वीसाएमाण [विस्वादयत् | रा० ७६५,८०२ विहुय विधुन | जी. ३१५८० वीसादणिज्ज [विश्वादनीय] जी० ३१६०२,८६०, विहूण [विहीन ] जी० ३।२६८,३६० ८६६,८७२,८७८ वीइक्कत [अतिक्रान्त मो० १४३,१४४. वीहि [व्रीहि ] जी० ३।६२१ रा० ८०२ वीहि | वीथि ] जी० ३।२६८,३१८ वीईवइत्ता व्यतिबज्य ] ओ० १६२. रा० १२६. वीहिया | वीथिका] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१६३८ जी० ३१४४७ वीईवयमाण पतिव्रजत्] रा० १०,१२,२७६. वीस [विंशति ] जी० ३११३६ __ जी० ३४४५ बुग्गाहेमाण [व्युद्ग्राहयत् ओ० १५५,१६० वीचि दीचि] ओ० ४६. जी० ३।२५६ Vवुच्च [वच्] —वुच्चइ. ओ० ८६. रा० १२३. वीचिपट्ट [वीचिपट्ट] जी० ३।५६७ जी० ३१२३६-वुच्चंति. जी० ३१५८ वीजेमाण [वीजयत्] श्री० ३।४१७ -वुच्चति. रा० १२३. जी. ३२३६ वीणग्गाह [वीणाग्राह] ओ० ६४ वुड्डसावग [वृद्धश्रावक ] ओ० ६३ वीणा वीणा] रा० ७७,१७३. जी० ३१२८५ वुद्धि वृद्धि] जी० ३७८१,७८२,८४१ धोतसोग [वीतशोक] जी० ३१६२७ वृत्त | उक्त] ओ० ५६. रा० १०,१२,१४,१८, वीतिवइत्ता [व्यतिव्रज्य] जी० ३१७३६ ६०,६३,६४,७४,२७६,६५५,६८१,७०१, वीतिवतित्ता [व्यतिव्रज्य ] जी० ३।३५१ ७०३,७०७,७२५,७६२. जी० ३१४४५,५५५ वीतिवध [वि + अति+व्रज्]-वीतिवइंसु. वुप्पाएमाण [गुत्सादयत् ] ओ० १५५,१६० जी० ३१८४०-वीतिवइस्संति. जी० ३१८४० -वोतिवएज्जा. जी० ३८६-वीतिवयंति. वूह [व्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ वेइय [व्येजित] रा० १७३. जी० ६।२८५ जी० ३१८४० गेइयपुडंतर [वेदिकापुटान्तर] रा० १६७ वोतिवयमाण [पतिव्रजत्] रा० ५६. जी० ३८६, २।८६, नेइयफलक [वेदिकाफलक] रा० १६७ १७६,१७८,१८०,१८२ नेइया [वेदिका] रा० १७,१८,२०,३२,१२६, वीतीवइत्ता व्यतिबज्य] रा० १२६ १६७. जी० ३॥३७२,६०४,७२३,७७६,७७७, वीषि वीथि] बी० ३।३५५ ७७६,६१० वीरवलय [वीरवलय] ओ० ६३ नेइयावाहा [वेदिकाबाहु] रा० १९७ वीरासणिय वीरासनिक ओ० ३६ वेउवि [विकारिन्] ओ० ५१ वीरिय [वीर्य ] ओ० ७१,८६ से १५,११४,११७, ११.१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६१. वेउदिवउं [विकर्तुम् ] रा० १८ जी० ३१५८६ वेउव्विय [वैक्रिय] रा० २७६,२८०. जी० ११८२, वीरिपलद्धि वीर्यलब्धि] ओ० ११६ ६३,११६,१३५; ३३१२६।४,४४५,८४२ वीवाह | विवाह ] जी० ३१६१४ वेउन्विामीसासरीर वैक्रियकमिश्रकशरीर] 1वीसंद [वि+स्यन्द् ] ---वीसंदलि. जी० ३१५८६ ओ० १७६ वीसंदित विस्यन्दित] जी० ३८७२ वेउन्वियलद्धि [वैक्रियलब्धि] ओ० ११६ वीसत्य विश्वस्त ] ओ० १ वेउब्वियसमुग्घात [वैक्रियसमुद्घात] वीससा | विस्रसा] जी० ३०५८६ से ५६५ जी० ३३१११२,१११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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