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________________ ६६८ बुज्झ-भंत २६२,७७७,७७८,७८८. जी० ३।४५७ बोहि [बोधि] ओ० १५१. रा०८१२ बोहिदय [बोधि दय] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ बोहिय [बोधित] ओ० १६ बुज्झ [दे०]-- बुज्झइ. ओ० १७७.-बुझंति. ओ० ७२. जी० १११३३.--बुझिहिंति. ओ० १६६.---बुज्झिहिति. ओ० १५४. रा० ८१२ -बुज्झ [बुध्] -बुज्झिहिति. ओ० १५१ बुज्झिहित्ता [बुद्ध्वा] ओ० १५१ बुद्ध [ बुद्ध] ओ० १६,२१,५४.१९५।२०. रा०८, २६२. जी०३१४५७ बुद्धबोहियसिद्ध [बुद्धबोधितसिद्ध] जी० २८ बुद्धि [बुद्धि] रा० ६७५ बुब्बुय [बुबुद] ओ० २३ बुह | बुध] ओ० ५० /बू [ब्र]--बूया. रा० ७३२ बर [बर] ओ० १३. रा०७३२. जी० ३।२८४, २६७,३११,४०७ बेइंदिय [द्वीन्द्रिय] जी० ११८३,८४,८७,८८, १२८, २११०१,१०३,११२,१२१,१३१,१३६, १३८.१४६,१४६; ३३१३०,१३६,१६६ ४११,४,८,१२,१६,२०,२१,२३,२५; ८।१, ३,५; 8॥१,३,५,७,२६४ बॅट [वन्त] जी० ३११७४ बेंटट्ठाइ [वृन्तस्थायिन् ] रा० ६,१२ बंदिय [वीन्द्रिय ] जी० ४।१७, ६।१६७,१६६, २२१,२२३,२६४ बेयाहिय [द्वयाहिक] जी० ३।६२८ बेलंव [बेलम्ब] जी० ३।७२४ बेला बेला] जी० ३।७३३ बोंड [दे०] जी० ३।५६६ बोंदि [दे० ओ० ४७,७२,१६५।१,२. रा० ७७२ बोद्धव्व बोद्धव्य] ओ० १६५॥५,६. ____जी० ३।१२६।१० बोधव्व [बोद्धव्य] जी० ११६६ बोधिय [बोधित] जी० ३।५६६,५६७ बोल [दे ०] ओ ० ४६,४६,५२. रा० १५,६८७, ६८८. जी०३।६२७,८४२,८४५ बोय [बोधक] ओ० १६,२१,२२,५४. रा० ८, भइ [भृति ] रा० ७८७,७८८ भइणी [ भगिनी] जी० ३।६११ भइय [ भक्त्र] ओ० १६५।१५ भइय [भृतिक] रा० १२ भंगुर [भङ्गुर ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ भंजिज्जमाण [भज्यमान] रा० ३० भंड [भाण्ड] ओ० ४६,११७. रा० ३०,१५२, २६६,२६८,२८४,४७५,५३५,७७४,७६६. जी० ३१२८३,३२५,४२६,४३२,४५०,५३४, ५४१,११२८,११३० भंग [दे०] ओ० ५६ भंख्यिालिछ [भण्डिकालिञ्छ] जी० ३।११८ भंत [भदन्त ] ओ०६६,७६,८४ से ६५,११४, ११७,११८,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७, १६६ से १७२,१७४,१७५,१७७,१८१,१८४ से १६२. रा० १०,५८,६२,६३,६५,१२१ से १२४,१७३,१९७ से २००,६६५ से ६६७, ६६५,७००,७०२ से ७०४,७१८,७२०,७३६, ७३८,७४७,७४८,७५० से ७५४,७५६,७५८ से ७६१,७६२,७६४ से ७६७,७७०,७७२ से ७७५,७७७,७८२ से ७८५,७८७,७९८,८१७. जी० ११५ से ३३,४१ से ४६,५१ से ५४, ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,१३ से ४६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३,२।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४,७६,८२ से ८४,८६.८८, ६२,६५ से ६८,१०७ से १०६,१११,११३, ११४,११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १५० ३३ से ६,११ से २०,२४ से ३५,३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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