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________________ ७२४ लेस्सा-लोहियक्ख लेस्सा लेश्या] ओ० १५६. जी० १।२१,७६, ५६४,५६५. जी० ३।४४५,४५७,४६० से ११६,१३६, ३१०१,१२८,१५०,१६०, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५३२, ११०१ ५४७ लेह [लेख] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ लोमहत्थय [ल महस्तक रा० २६१,२६४ से लेहणी [लेखनी] रा० २७०. जी० ३।४३५ २६७,३००,३०५,३१० से ३१२,३५२ से लोग लक] रा० ७५१,७५३,८१५. जी०१११४०; ३५६,४१४,४७३ से ४७५,५३४,५३५,५६४ ३१७६५,८३८२,६७२, ५९ ५६५. जी० ३४५८ लोगंत [लोकान्त ] ओ० १६५,१६५६ लोमहरिस लोमहर्ष ] जी० ३।८३ लोगद्विति [लोकस्थिति] जी० ३।७६५ लोय [लोक ] ओ० ७१,१६६,१७०,१७४, लोगणाह [लोकनाथ ] रा० २६२. जी० ३.४५७ जी० १६१३६,२१२०,१३१,३।११८,११६, लोगनाली [लोक नाडी, "नाली ] जी० ३।११११ ८४१, ५८,२२, ६।२५७ लोगनाह [लोकनाथ ] रा०८ लोयंत [लोकान्त जी० ३१३३ से ३६, १००२ लोगपईव [लोकप्रदीप] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लायग्ग [ लोकाग्र] ओ० १६८,१६३,१६५।२ लोगपज्जोयगर [ल कप्रद्योतकर] रा० ८,२६२. लोयग्गथूभिया [लोकावस्तूपिका] ओ० १६३ जो० २।४५७ लोग्गपडिबुज्झणा [ लोकानप्रतिबोधना] लोगमज्झावसाणिय [लोकमध्यावसानिक | ओ०१६३ रा० ११७,२८१ जी० ३,४४७ लोयण [ले.चन] जी० ३.५६७ लोगहिय [लोकहित] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लोल [लोल] ओ० ६. जी० ३।२७५ लोगाणुभाव [लोकानुभाव] जी० ३१७६५ लोव [लोप] ओ० ११७ लोगुत्तम [लोकोत्तम] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लोह [ लोभ ] ओ० २८,३७,४४,६१,११७,१६१, लोगोवयारविणय [लोकोपचारविनय ] ओ० ४० १६३,१६८. रा० ७६६. जी० ३११२८ लोण | लवण] ओ०६२. जी० ३१७२१ लोहकसाइ लोभकष यिन् ] जी० ६१५३ लोद्ध लोन ओ० ६,१०. जी. ११७२; ३।३८८, लोहकसाय [लोभकषाय] जी० १११६ ५८३ लोहया [लोभता] ओ० ११६ लोभ लोभ] ओ० ४६,७१. जी० ३:१२८,५६८, लोहारंबरिस लाहकारम्बरीष ] जी० ३।११८ ७९५,८४१ लोहित लोहित] रा० १२८,१३२. जी० ३१२२, लोभकसाइ [लोभकपायिन् ] जी० १११३१ ; ४५ ६।१४८,१५०,१५५ लोहितक्ख लोहिताक्ष ] जी० ३।७,३००,४१५ लोभविवेक [लोभविवेक ] ओ० ७१ लोहितक्खमणि [लोहिताक्षमणि] जी० ३।२८० लोमपक्खि [लोमपक्षिन् ] जी० १:११३,११५ लोहितक्खमय [लोहिताक्षमय] रा० १६,१७५, लोमहत्थ [ल महस्त ] ओ० २. रा० १५६,१५७, १६०. जी० ३।२६४,२८७,३०० २५८,२७६,२६५ से २६६,३५१. जी०३।३२६, लोहितग [ लोहितक] जी० ३।२८० ३३०,४१६,४६० लोहिय | लोहित | ओ० १२. रा० २२,२४,२७, लोमहत्थग [लोमहस्तक] रा० २६१,२६४ से । १५३. जी० १:५०, ३११११,२६०,३२६, २६६,२६८,३००,३०५,३१० से ३१२,३५१ १०७५,१०७६ से ३५६,४१४,४७३ से ८७५,५३४,५३५, लोहियक्ख [लोहिताक्ष] रा० १०,१२,१८,६५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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