Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म भये और चिन्तागति भी इंद्र को गज देय मुनींद्र भये इस भांति राक्षस बंश में अनेक राजा भये
| तथा राजा इंद्र के इंद्र प्रभु उसके मेघ उसके मृगीदमन उसके पवि उसके इंद्रजित् उसके भानुवर्मा उस के भानुसूर्य, समान तेजस्वी उस के मुगरि उसके त्रिजित, उसके भीम, उसके मोहन, उस के उद्धारक उस के रवि, उसके चाकार उसके बज्रमध्य, उसके प्रमोद, उसके सिंह, उसके विक्रम, उसके चामुण्ड, उसके मारण, उसके भीष्म, उसके द्रुपवाह, उसके अरिमर्दन, उसके निर्वाणभक्ति, उसके उग्रश्री उसके अर्हद्भक्त, उसके अनुत्तर, उसके गतभ्रम, उसके अनि, उसके चंड, उसके लंक, उसके मयूखाहन, उसके महाबाहु, उस के मनोम्य, उसके भास्कर प्रभ, उसके ब्रहद्गति, उसके ब्रहदांकत
और उसके प्रारसंत्रास उसके चन्द्रावर्त, उस के महारव, उसके मेघध्वान, उसके ग्रहक्षोभ, उस के नक्षत्रदमन इस भांति कोटिक राजा भए बड़े विद्याधर महाबल मंडित महाकांतिके धारी पराक्रमी परदारा के त्यागी निज स्त्री ही में है संतोष जिनको लंका के स्वामी महा सुंदर अस्त्र शस्त्रकेधारक स्वर्ग लोक के आये अनेक राजा भए उन्हों ने अपने पुत्रों को राज देय जगत से उदास होय जिन दीक्षा घारी केएक तो कर्म काट निर्वाण को गये जो तीन लोक का शिखर है और कैएक राजा पुण्य के प्रभाव से प्रथम स्वर्ग को आदि देय सर्वार्थ सिद्धि तक प्राप्त भए इस भांति अनेक गजा व्यतीत भये लंका का अधिपति घनप्रभ उसकी राणी पद्माका पुत्र कीर्तिधवल प्रसिद्ध भया अनेक विद्याधर जिसके आज्ञाकारी जैसे स्वर्गमें इंद्र राज करें तैसे लंका में कीर्तिधवल राज करता भया इस भांति पूर्व भवमें किया जो तप उसके बलसे यह जीव देवमति के तथा मनुष्य गतिके सुख भोग
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