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सूत्रकृताङ्गसूत्रे __ अन्वयार्थ:---(ताय) हे तात ! प्रियपुत्र ! (गंतु) गन्तुमेकवारं गत्वा (पुणो गच्छे) पुनरागच्छेः (तेण) तेन गृहगमनेन (ण असमणोसिया) न अश्रमणः स्यात् साधुत्वं न व्यपैव्यतीत्यर्थः । (अकामगं) अकामकं कार्ये इच्छारहितम् (परिकम) पराक्रमन्तं स्वामिल पितानुष्ठानं कुर्वागम् (ते) त्वाम् (को) कः (वारेउमरिहति) वारयितुमर्हति नो कोपीत्यर्थः ॥७॥
शब्दार्थ-'ताय-तात' हे प्रिय पुत्र ! 'गंतु-गन्तुम्' एकयार घर जाकर 'पुणो गच्छे-पुनरागच्छे' फिर आ जाना 'तेण-तेन' जिससे 'ण असमणो सिया-न अश्रमणः स्यात्' तुं अश्रमण नहीं हो सकता अर्थात इससे तेरा साधुपन चला नहीं जायमा 'अकामग-अकामकम्' घर के कामकाज में रहित होकर परिकम-पराकान्तम्' अपनी इच्छानुसार संयम का अनुष्ठान करते हुए 'ते-त्वाम्' तुमको 'को-क' कौन 'वारे उमरिहति-वारयितुमर्हति' पीछे हटाने के लिये समर्थ हो सकता है अर्थात् कोई समर्थ नहीं है ॥७॥ ___ अन्वार्थ-हे पुत्र ! एक वार घर आकर फिर पीछे चले आना ऐसा करने से साधुता चली नहीं जाएगी अगर तुम्हारी इच्छा कार्य करने की न हो या तुम्हें अपनी इच्छानुसार कोई काम करना हो तो कौन रोकेगा? अर्थात् कोई उसमें रुकावट नहीं डालेगा ॥७॥
शहा---'ताय-तात' ३ तात! 'गंतुं-गन्तुम्' मेवा२ घरे ने 'पुणोगच्छे-पुनरागच्छेः' या भावी ने 'वेण-तेन' नाथा 'ण असयणो-न अश्रमणः स्यात्' तुं समय
यता नथी, अर्थात् मानायी तासाधुप तु नही २3. 'अकामग-अकामकम्' ५२न। म २२हित थ ने परिक्कम-पराक्रान्तम्' पातानी ४२७ नुसा२ सयमर्नु अनुहान ४२i - त्वाम्' तमन “को-कः' । 'वारे उ मरिहति-चारयितुमर्हति' ५। .११.ना માટે સમર્થ થઈ શકે છે? અર્થાત્ કઈ પણ સમર્થ નથી. છા
સૂવાર્થ-હે પુત્ર! એક વાર ઘેર આવીને તને ન ફાવે તે પાછા ચાલે જજે. એવું કરવાથી તારી સાધુતા નષ્ટ નહીં થઈ જાય. જે તારી કામ કરવાની ઈચ્છા ન હોય અથવા તારે તારી ઈચ્છાનુસાર કેઈ કામ કરવું હોય તે તને કોણ રોકવાનું છે? એટલે કે તારી ઈચ્છાનુસાર કામ કરવામાં અમે કેઈ નડતરરૂપ બનશું નહી. છા
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