Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे रूपं बोध्यम् । अथ भाव:-अधोमुखबद्धहस्ततलरूपा, तत्परिमितं धान्यमप्यमृतिरित्युच्यते । तथा-द्वे अमृती एका प्रतिः नावाकारतया व्यवस्थापितमाञ्जलिकरणप्पमाणे ? धन्नमाणप्पमाणे दो असईओ पसई, दो पसईओ सेतिया, चत्तारि सेइयाओ कुलमो, चत्तारि कुलया पत्थो चत्तारि पत्थया, आढगं, चत्तारि आढगाइं दोनो, सहि आयाइं जहन्नए, कुंभे, असीइ, आढयाई मज्झिमए कुंभे, आदवलयं उकोसए कुंभे अयं आइयतइए वाहे) यह धान्यमान प्रमाण दो अमृति, प्रकृति आदि रूप है। अमृति यह धान्यादिक रूप का एक माप विशेष है । धान्यादिक द्रव्यों के जितने भी माप हैं उन सब की उत्पत्ति इसी असृति रूप माप से हुई है। जैसे इकाई से दुहाई आदिकों की। " अश्नुते-ध्यानोति सकलधान्यमानानि स्वप्रभवत्वेन या सा अमृतिः" इस व्युत्पत्ति का यही अर्थ है। हाथ की हथेली को अधोमुख व्यवस्थापित करने पर जितना भी धान्य समा जावे उसका नाम एक असृति है। वैसे तो अधोमुख व्यवस्थापित हथेली का नाम ही अमृति है । इस अमृति में जितना भी धान्मादिक द्रव्य समाया हुआ होता है उसको भी अमृति कह दिया जाता है। इस लिये इस अमृति परिमित जितना भी धान्यादिक द्रव्य है वह यहाँ असति शब्द का वाच्यार्थ जानना चाहिये। दो अहतियों की एक प्रसूति होती है । इस प्रकृति का आकार नाव के आकार जैसा होता है। अर्थात दो असईओ पसई, दो पसईओ सेतिया, चत्तारि सेइयाओ कुलओ, चत्तारि कुलया, पत्थो, चत्तारि पत्थया आढगं, चत्तारि आढगाई, दोणो सवि आढयाई जहन्नए, कुंभे, असीइ अढयाई माज्झमए कुंभे, सादगाय उकोसए कुंभे अट्य आढय सइए वाहे) मा धान्य मान प्रभाष्य में सति, असति पणे ३५ છે. અમૃતિ આ ધાન્યાદિક દ્રવ્યોનાં જેટલાં માપે છે તે સર્વેની ઉત્પત્તિ આ असति ३५ भा५थी ये छे. रेम है मेथी मे परे ‘अनतेव्याप्नोति सकलधान्यमानानि स्व प्रभवत्वेन या सा अमृतिः' मा व्यु.५. ત્તિને એજ અર્થ છે. અધે મુખ હાથમાં જેટલું ધાન્ય સમાવિષ્ટ થઈ જાય તેનું નામ અમૃતિ છે. આમ તે અધમુખ વ્યવસ્થાપિત હથેલીનું નામ જ અમૃતિ છે. આ અમૃતિમાં જેટલું ધાન્ય વગેરે દ્રવ્ય સમાવિષ્ટ થઈ જાય, તેને પણ અસુતિ કહેવામાં આવે છે. એટલા માટે આ અતિ પીમિત જેટલાં ધાન્યાદિક દ્રવ્યો છે, તે અહીં અસુતિ શબદલે વાચ્ય થયે જાણવા જોઈએ બે અતિઓની એક પ્રસૂતિ થાય છે. આ સૃતિને આકાર હેડીના
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