Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थितिनिरूपणम् ३१५ जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूर्तम् । पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिक, जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षण पूर्वकोटिः, अन्तरर्मुहूततॊना । चतुष्पदस्थल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यम्पोनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षण त्रीणि पल्योपमानि । संमूछिमचतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियसे तो अंतर्मुहर्त की है और उत्कृष्ट से १ एक करोड़ पूर्व की है। (अपज्जत्तगगभवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छागोयमा! जहण्णे ग वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) जो अपप्तिक गर्भजन्मवाले जलचर तिर्यश्चपंचेन्द्रिय जीव है, उनकी स्थिति जघन्य से और उत्कृष्ट से दोनों प्रकार से भी अंतर्मुहूर्त की है । (पज्जत्तगगम्भवतियजलयरपंचेदियत्तिरिक्खजोणियाणं पुच्छागोयमा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उककोसेणं अंतोमुत्तुणा पुधकोडी) जो गर्भ जन्मवाले पंचेन्द्रिय जलचर तिर्यश्चपर्यातक हैं, उनको स्थिति जघन्य से तो अंतर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्ट से अंतर्मुहूतन्यून एक करोड़पूर्व की है। (चउपयथलयरपंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं तिणि पलिओ. वमाई) जो थलचर पंचेन्द्रियतिर्यश्च चतुष्पद है, उनकी स्थिति जघन्य से अंतर्मुहूर्त की है और उस्कृष्ट तीन पल्योपम की है। (समुच्छिमचउप्पयथलचरपंचेदियतिक्ख जोणियाणं पुच्छा गोयमा ! जहण्णेणं इत्तरी छ भने उत्कृष्ट थी १ ४३३ पूर्व रेकी छे. (अपज्जत्तग गम्भवतियजल यरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुन्छा-गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अतोमुहत्तं) रे अपर्याप्त मा सयर તિય"ચ પંચેન્દ્રિય જીવે છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ અને अष्टनी अपेक्षा ५५ मतभुत २८बी छे. (पज्जत्तगगब्भवतिय जलयरपंचे दिय त्तरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं उस्कोसेणं अंतोमुत्तू गा पुचकोडी) २
ग ण पन्द्रिय सेयर તિર્યંચ અપર્યાપ્ત છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ તે અંતમુ. સ્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતમુહૂત ન્યૂન એક કરોડ પૂર્વની છે. (चउपयथल परपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा! जहण्णेणं अतो. मुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलि भोवमाइं) रे ५५२ ५येन्द्रिय तिय य यतु. પડે છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ અંતમુહૂર્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી अ ५.५ रेकी छे. (समुच्छिमच उपयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणि.
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