Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे स्यात्तावत्प्रमाणास्तत्मदेशा बोध्या। विष्कम्भमूचिस्तु असंख्येयः समय रिक्ता स्यादतस्तम्प्रदेशा अघि असंख्येया विज्ञेया । इत्थं च क्षेत्रतोऽसंख्येयप्रदेशसमसंख्यकानि व्यन्तरबद्धवैक्रियशीराणि बोध्यानीति । व्यन्तराणां मुक्तानि वैक्रियशरीराणि औधिकौदारिकशरीरद् बोध्यानि । आहारकशरीराणि असुरकुमाराहारकशरीरवद् धोध्यानि । व्यन्नराणां सैनस कार्यकशरीराणि स्यक्रियशरीरवद् जितने समय में उन शीरों से रिक्त हो जाती है, उतने समय प्रमाण प्रदेश उस विष्फंभसूचि के जालना चाहिये। अर्शत् यह विष्भसूचि इस प्रकार से रिक्त करने पर असंख्यात समयों में ही रिक्त होगी। इसलिये इस विभाचि के प्रदेश भी असंख्यात ही मानना चाहिये। इस प्रकार से विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलला है कि-व्यन्तर देवों के बद्ध वैक्रिय शरीरो' का प्रमाण क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात प्रदेश प्रमाण है-अर्थात् ये असंख्यात हैं। (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्या) व्यन्तर देवों के मुक्त वैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्त औदारिक शरीर के जैसा अनंत है। (आहारगसरीरा दुविहा वि जहा असुरकुमाराणं तहा भाणियव्या) बद्ध और मुक्त आहारक शरीरों का प्रमाण असुर कुमारों के इन दोनों प्रकार के आहारक शरीरों के प्रमाग के जैसा जानना चाहिये। तात्पर्य यह कि 'व्यन्तरदेवों में बद्ध औदारिक शरीरो के जैसा बद्ध आहारक शरीर नहीं होते हैं। मुक्ताहारकशरीर मुक्त औदारिक शरीरो के जैसा યમાં તે શરીરેથી રિકત થઈ જાય છે, તેટલા સમય પ્રમાણે પ્રદેશ તે વિષ્કભસૂચિને જાણ જોઈએ. એટલે આ વિષ્ફભસૂચિ આ રીતે રિકત કરવાથી અસંખ્યાત સમયમાં જ રિકત (ખાલી) થશે. એટલા માટે આ આ વિધ્વંભ સચિના પ્રદેશો પણ અસંખ્યાત જ માનવા જોઈએ. આ પ્રમાણે વિચાર કરવાથી આ નિષ્કર્ષ નીકળે છે કે “વ્યંતર દેવોના બદ્ધ વૈકિય શરીરેનું પ્રમાણ ક્ષેત્રની અપેક્ષા અસંખ્યાત પ્રદેશ પ્રમાણ છે. એટલે કે એઓ અસંખ્યાત છે. (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्वा) व्यत२ वाना भुत वाय
सरनु प्रमाण सामान्य भुत मोहारि शीरनी २ सनत छ ? आहारग. सरीरा दुविहा वि जहा असुरकुमाराणं तहा भाणियव्वा) मद्ध मन भुत माडा२४ શરીરેનું પ્રમાણ અસુરકુમારના બન્ને પ્રકારના આહારક શરીરના પ્રમાણુની જેમ જાણવાં જોઈએ. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે “વ્યન્તર દેવોમાં બદ્ધ ઔદારિક શરીરની જેમ બદ્ધ આહારક શરીરે હેતાં નથી. મુકત આહારક શરીરે
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