Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
बोध्यानि । ज्योतिष्काणामौदारिकशरीराणि नैरयिकौदारिकवद् बोध्यानि । तथा ज्योतिष्काणां वैकियशरीराणि वद्रमुक्तेति द्विविधानि । तत्र यानि तानि बद्धानि तानि असंख्येयानि बोध्यानि । तानि शरीराणि असंख्येयोत्सर्पिण्यवसपिंणीसमयराशिसमसंख्यकानि काळतः । क्षेत्रतः प्रतरासंख्येयभागवयसख्येयश्रेणिगत प्रदेशप्रमाणानि बद्धवैक्रियशरीराणि । अत्र तासां श्रेणीनां विष्कम्भमुचि
ते । इयं विष्कम्ममूविः व्यन्तरविष्कम्भमूच्यपेक्षया संख्येयगुणा बौध्या, ज्योतिष्काणां व्यन्तरापेक्षया संख्येयगुणत्वेन महादण्ड के पठितत्वात् । इयं विसरीरा पण्णत्ता) हे भदन्त ! ज्योतिष्कदेवों के कितने वैक्रियशरीर कहे गये हैं । (गोधमा !) हे गौतम! (वेउब्वियसरीरा दुबिहा पण्णत्ता) वैक्रियशरीर दो प्रकार के कहे हुए है । (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं - (बद्वेल्लया य मुक्केल्लया य) एक बद्ध वैक्रिय शरीर दूसरे मुक्त वैक्रियशरीर । (तस्थ णं जे ते बद्धेला जोब तासि णं सेढीणं विक्ख भई बे छप्पण्णंगुल सय वग्गपलि भागो पयरस्स) इनमें जो वे यद्व वैकियशरीर हैं वे असंख्यात हैं। असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के जितने समय होते हैं, उतने वे कालकी अपेक्षा से हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से इनका प्रमाण प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों के प्रदेशों के बराबर है। यहां पर इन श्रेणियों की विष्कंभसूचि ग्रहण की गई है । यह विष्कंभमूचि व्यन्तरों की विष्कंभसूचि की अपेक्षा संख्यात गुणी है । क्योंकि ज्योतिष्कों का प्रमाण व्यन्तरों के प्रमाण की अपेक्षा संख्यात गुणा महाण्डल में कहा જ્યાતિષ્ઠ દેવાના કેટલાં વૈક્રિય શરીરે! કહેવામાં આવ્યાં છે, ( गोयमा ! ) डे गौतम ! (वेडव्वियसरीरा दुविहा पण्णत्ता) वैडिय शरीरे। मे प्राश्नां डेवामां भाव्यां छे. (तं जहा ) ते अरे या प्रमाणे छे. ( बद्धेल्लया य मुक्केल्लया ) 5 अद्ध वैडिय शरीर भने जीन्नु भुत वैडियशरीर (तस्थ णं जे ते बद्धेल्लया जाव तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई बे छप्पण्णंगुलायarroभागो पयरस्स) यामां ने जद्ध वैडिय शरीश छे, ते असण्यात છે. અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણી અને અવસર્પિણી કાળના જેટલા સમયે। હાય છે, તેટલા તે કાળની અપેક્ષાએ છે. ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ એમનું પ્રમાણુ પ્રતરના અસંખ્યાતમા ભાગમાં વર્તમાન અસખ્યાત શ્રેણિએના પ્રદેશેાની ખરાખર છે. અહીંઆ શ્રેણિઓની વિષ્ફભસૂચિ ગ્રહણ કરવામાં આવી છે. આવિષ્ક'ભસૂચિ જ્યંતરાની વિશ્ક ભસૂચિની અપેક્ષાએ સખ્યાતગણી છે. કેમકે જ્યેાતિકૈાનુ... પ્રમાણ વ્યંતરાના પ્રમાણુની અપેક્ષા સખ્યાત ગણા
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