Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३४ जघन्यसंख्येयकनिरूपणम् ६५५ आमलको यस्मिन् प्रक्षिप्यते स मञ्चो भरिष्यति । पुनस्तत्र अन्य आमलको नैष मास्यति, मञ्चस्य आमूलशिखं भृतत्वादन्य आमलको यथा न माति, इत्थमेव अपरापराभिः शलाकामिः प्रक्षिप्यमाणाभिः प्रक्षिप्यमाणाभिर्यदा असंलप्याः अति. बहनः सपशिखा पल्या आमूलशिवम् असत्कल्पनया भृता भवन्ति तदा उत्कृष्टकं संख्येयकं भवतीत्यक्षरार्थः। भावार्थ स्वयम्-पूर्वनिर्दिष्टस्वरूपादनवस्थितपल्या दपरेऽपि जम्बूद्वीपममाणा योजनसहस्रावग. ढास्त्रयः पल्या बुद्धया परिकल्प्यन्ते तत्र प्रथमः शलाकापल्यः द्वितीयः प्रतिशलाकापल्यस्तृतीयो महाशलाकापल्यश्च । पक्खित्ते सेऽवि माए) दूसरा भी डाला जावे तो वह भी समा जाता है। (एवं पक्खिप्पमाणे ण पक्विपमाणे णं हो ही से वि आमलए जंसि पक्खित्ते से मंचे भरिजिजहिह) इस प्रकार आंचलों को डालते २ अन्त में कोई एक ऐसा भी आंवला होता है कि जिसके डाल देने पर वह मंच भर जाता है फिर वहां अन्य आंवला डालने पर समा नहीं सकता। क्योंकि मंच आमूलशिख भर जाता है। इस प्रकार आमूलशिखा भरा होने के कारण जिस प्रकार उसमें अन्य आमलक नहीं समाता है, इसी प्रकार से चार बार डाली गई अपर अपर शलाकाओं से जब असंलप्य -वे बहुत अनेक-पल्य अन्त में आमूल शिख भर जाते हैं कि जिनमें डालने पर भी एक सर्षप का दाना नहीं समा सकता है तब इसी स्थिति में उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्रारंभ होता है। यहां सूत्रकार ने जो अनवस्थितपल्य से अतिरिक्त एक शलाकापल्य कहा है उससे सेऽवि माए) यी ५५ नाभवामां आवे तो त ५५ समाविष्ट थ नय छ. (एवं पक्खिप्पमाणेणं पक्खिप्पमाणेणं हो ही से वि आमलए जंसि पक्खित्ते से मंचे भरिज्जिहिइ) मा प्रमाणे सामान नमिता नामतi छेले थे એવું પણ આમળું હોય છે કે જેને નાખવાથી તે મંચ પરિપૂર્ણ થઈ જાય છે. પછી તેમાં બીજું આમળું નાખવામાં આવે તે માય નહિ કેમ કે મંચ પહેલેથી જ શિખર સુધી પરિપૂર્ણ થઈ ગયેલ હોય છે. આ પ્રમાણે આમૂલ શિખ સંપરિત હેવાથી જેમ તેમાં અન્ય આમલકને સમાવેશ થાય નહીં, આ પ્રમાણે વારંવાર નાખવામાં આવેલી અપર અપર શલાકાઓથી જ્યારે અસંલય–તે ઘણા ૫ અંતમાં આમૂલશિખ પુરિત થઈ જાય છે. તે પછી તેમાં એક સર્ષ૫ જેટલી પણ જગ્યા રહેતી નથી. ત્યારે તે સ્થિતિમાં ઉત્કૃષ્ટ સંખ્યાતનું સ્થાન પ્રારંભ થાય છે. અહીં સૂત્રકારે અનવસ્થિત પલ્યોતિરિક્ત એક શલાકાપલ્ય કહેલ છે, તેથી એ
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