Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
तयेतयोरेव दिशोदेशविरतिसामायिकस्य सर्वविरतिसामायिकस्य च पूर्वप्रतिपन्नका भाज्याः, प्रतिपद्यमानास्तु नियमान्न सन्तीति ।
"
तथा - सम्मूर्च्छिममनुष्य - गर्भजकर्मभूमिमनुष्य- गर्भ जाकर्म भूमिमनुष्य - षट्पञ्चाशदन्तीं मनुष्या इति चतुर्विधा मनुष्याः, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रियपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च इति चतुर्विधास्तिर्यञ्चः पृथिवीकाया- काय - तेजस्काय वायुकाया इति चतुर्विधाः स्थावराः, अग्रबीज- मूलबीज- पर्व बीज-स्कन्धवीजानीति चत्वारो वनस्पतयः, तथा नरकगति देवगतिश्चेत्येता अष्टादशभावदिशः । एता भावदिशोऽधिकृत्य 'क्व किं सामायिकं भवतीत्यपि वक्तव्यम् । यथा- पृथिवीकाया - काय - तेजस्काय - वायुकाया - ग्रवीज - मूलबीज- पर्व बीज - स्कन्धवीजेषु अष्टसु इन्हीं दो दिशाओं में देशविरति सामायिक और सर्वविरति सामायिक के पूर्व प्रतिपन्नक भव्य जीव भाज्य होते हैं । और जो प्रतिपद्यमानक भव्य जीव हैं, वे यहाँ नियम से नहीं है ।
(१) संमूच्छिम मनुष्य (२) गर्भज कर्मभूमिमनुष्य, (३) गर्भजअ - कर्म भूमिमनुष्य, (४) छप्पन अन्तर्वोपजमनुष्य ये चार प्रकार के मनुष्य, दीन्द्रिय, त्रिन्द्रिय, चतुरिन्द्रय और पंचेन्द्रिय ये चार प्रकार के तिर्यञ्च, पृथिवीकाय, अष्काय, तेजस्काय, वायुकाय, ये चार प्रकार के स्थावर, अग्रबीज मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज ये चार वनस्पति, तथा-नरकगति, देवगति ये दो गतियाँ - इस प्रकार ये सब मिलकर १८ भाव दिशाएँ हैं। इन भावदिशाओं को आश्रित करके 'कहां कौन सामाचिक होता है' यह भी कहना चाहिये-जैसे- पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, इन आठ
અને સવરિત સામાયિકના પૂર્વપ્રતિપનક ભવ્યજીવે ભાજય હાય છે. અને જે પ્રતિપદ્યમાનક ભવ્ય જીવેા છે, તે ત્યાં નિયમથી નથી.
(१) संभूर्च्छिभ मनुष्य, (२) गर्भ भूमि मनुष्य, (3) गर्ल અક્રમ ભૂમિ મનુષ્ય, (૪) છપ્પન અન્તદ્વીપ જ મનુષ્ય એ ચાર પ્રકારના मनुष्यो, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, यतुरिन्द्रिय याने पथेन्द्रिय, ओ यार अारना तिर्यय, पृथिवीद्वाय, अच्छाय, तेश्स्साय, वायुभय, से यार प्रहारना स्थावर, अअमीन, भूसमीन, पर्व जीन, सुधमीन, मेयर वनस्पति तथा नरसुगति देवગતિ એ એ ગતિએ આ પ્રમાણે આ સ મળીને ૧૮ છે. આ ભાવિશાઓ છે. ભાવ દિશાઓને આશ્રિત કરીને ‘કયાં કયુ' સામાયિક હાય છે, આ પણ કહેવુ' જોઈ એ, पृथिवीय साय, तेक्स्साय, वायुकाय, मणी, भूसभी पर्वणी,
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