Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 876
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४८ अनुगमनामानुयोगद्वारनिरूपणम् ८५९ तथा-सामायिकस्य निरुक्तिः निश्चितोक्ति वक्तव्या। तदुक्तम् "सम्मदिहि अमोहो, सो ही सम्भावदसणं बोही। अविवज्जओ सुदिट्ठि, त्ति एवमाई निरुत्ताई ॥१॥" छाया-सम्यग्दृष्टिरमोहः शोधिः सद्भावो दर्शनं बोधिः । __ अविपर्ययः सुदृष्टिरित्येवमादीनि नामानि ॥१॥इत्यादि। ॥इति षड्विंशतितमं द्वारम्॥२६॥ इति पविंशति द्वारात्मकस्य गाथाद्वयस्य संक्षेपार्थः ___ इत्थं च उपोद्घातनियुक्त्यनुगमो निरूपितो भवतीति सूचयितुमाह-'स एष उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम इति ॥मू० २४८॥ अथ सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगमं निरूपयति मूलम्-से किं तं सुत्तप्फासियनिज्जुत्ति अणुगमे ? सुत्तप्फासियनिज्जुत्ति अणुगमे-सुत्तं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलियं अवचामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंट्रोट्रविप्पमुकं गुरुवयणोवगयं। तओ तत्थ णनिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं छब्बीसवें द्वार में सामायिक की निरुक्ति करना चाहिये-निश्चित उक्ति का नाम निरुक्ति है। तदुक्तम्-'सम्मदिदि अमोहो' इत्यादि गाथा का भावार्थ-यह है कि 'सम्यग्दृष्टि, अमोह, शोधि, सद्भाव, दर्शन, बोधि, अविपर्यष सुदृष्टि इत्यादि ये नाम एक सामायिक के है। यह २६ वां द्वार है । इस प्रकार यह दो गाथाओं का संक्षेपार्थ है। इस प्रकार से उपोद्घात नियुक्त्यनुगम का यह निरूपण है । यही बात (से तं उवग्घाय निज्जुत्ति अणुगमे) इस सूत्र पाठ द्वारा सूत्रकार ने प्रकट की हैं । सू० २४८ ॥ ૨૬ માં દ્વારમાં સામાયિકની નિરુકિત કહેવી જોઈએ. નિશ્ચિત ઉક્તિને नाम निहित छे. तदुतम-सम्मदिट्ठि अमोहो' त्या माथा मापा । प्रमाणे छ , 'स५ ष्ट, सभा, शधि, समाव, शन, माधि, भवि५ર્થય, સુદષ્ટિ ઇત્યાદિ, આ નામે એક સામાયિકના છે, આ ૨૬ મું દ્વાર છે. આ પ્રમાણે બે ગાથાઓને સંક્ષેપાર્થ છે. આ પ્રમાણે ઉપઘાત નિયંકત્યનુआभनु मा नि३५४ छ. ४ पात (से तं उवग्यायनिज्जुत्तिअणु गमे) ॥ સૂત્રપાઠ વડે સૂત્રકારે પ્રકટ કરી છે. સૂત્ર-૨૪૮ For Private And Personal Use Only

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