Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सत्र २५० नयस्वरूपनिरूपणम् पज्ञप्ताः, मूलत्वं चैषामुत्तरभेदापेक्षया बोध्यम् । ते मूलनयाश्च नैगमसंग्रहादयो बोध्याः । तत्र नैगमं व्याख्यातुमाह-'णेगेहि माणेहि' इत्यादि । नैकैः-न एकानि नैकानि-प्रचुराणि तैस्तथाभूतैः मानः महासत्तासामान्यविशेषादिज्ञानमिनोति= परिच्छिनत्ति वस्तूनीति नैगमः, इतीयं नैगमस्य निरुक्तिबोध्या। अथवा-निगमाः 'लोके वसामि तिर्यग्लो केबसामि' इत्यादयः पूर्वोक्ता ए। बहवः परिच्छेदास्तेषु भवो नैगम इत्यपि नैगमशब्दस्य व्युत्पत्तिर्विज्ञेया। शेषाणाम् इतोऽवशिष्टानामपि नयानां लक्षणमिदं शृणुत, यदहं वक्ष्ये ॥१॥ अथ प्रतिज्ञातमेव वक्तुमुपक्रमते'संगहिय' इत्यादि । तीर्थ करगणधरादयो हि संगृहीतपिण्डिताथै सम्यग् गृहीतान
उत्तर--(सत्त मूलणया पण्णत्ता) सात मूलनय कहे गये हैं। इनमें मूलरूपता उत्सरभेदों की अपेक्षा जानना चाहिये । (तं जहा) वे सात. मूल नय ये हैं। (णेगमे, संगहे, यवहारे, उज्जुसुए, सदे, समभिरूढे, एवंभूए) नैगम, संग्रह व्यवहार, ऋजुमूत्र, शब्दसमभिरूड़, और एवं भूत। जो नय (तस्थ गेहिं माणेहि मिणइति णेगमस्स य निरुत्ती) वस्तूनि नैकैः मानः मिनोति इति नैगमः' इस निरुक्ति के अनुसार महासत्ता, सामान्य एवं विशेष आदि प्रचुर ज्ञानों द्वारा वस्तु का परिच्छेद करता है, वह नेगम नय है। अथवा 'लोके वसामि, तिर्यग्लो के वसामि' इत्यादि पूर्वोक्त जो परिच्छेद हैं-उनका नाम निगम है। इन निगमों में जो नय होता है, वह नैगमनय है। यह भी नैगम शब्द की व्युत्पत्ति है। (सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमोसुणह वोच्छं) इसके बाद जो और छह नय बाकी हैं, उनके इस लक्षण को सुनो-मैं
उत्तर--(सत्त मूलणया पण्णत्ता) सात भूसनयो अपामा मावस छे. भा सभा भूव३५उत्तरोनी अपेक्षा व मे. (तं जहा) ते सात भूख नयो । प्रमाणे छे. (णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुए, सद्दे, समभिरूढे. एवंभूए) नेगम, सड, व्यवहार, ऋ सूत्र, शसभाम३८ भने भून २ नय (तत्थ णेगेहि माणेहिं मिण इति णेगमस्स य निरुत्तीः) 'वस्तूनि नैकैः मानैः मिनोति इति नैगमः' मा निहित भुभम महासत्ता, सामान्य એવી વિશેષ આદિ પ્રચુર જ્ઞાન વડે વસ્તુપરિચ્છેદ કરે છે, તે નિગમ નય છે. अथवा 'लोके वसामि' तिर्यग्लोके वसामि' इत्यादि पूवात २ परिछ? छे, તેનું નામ નિગમ છે. આ નિગમમાં જે નય હોય છે તે નગમનાય છે. मा ५१ नराम शनी व्युत्पत्ति छे. (सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमोसुणहवोच्छं) त्या२मारे भी नाम शेष छ, तमना सक्ष। अ० ११०
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