Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 888
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २५० नयस्वरूपनिरूपणम् ८७१ सूत्राला पकनिक्षेपः सूत्रस्पर्श कनिर्यु क्त्यनुगमश्च युगपत् समाध्यन्ते । उक्तं चापि - "सुतं सुत्ताणुगमो, सुत्तालावयकओ य निक्खेवो । सुत्तफासियनिज्जती नया य समगं तु वच्चति ॥ " छाया - सूत्रं सूत्रानुगमः सूत्रालापककृतश्च निक्षेपः । सूत्रस्पर्शक नियुर्निया समक' व्रजन्ति ॥ इति ॥ इथं सूत्रस्पर्शक नियुक्त्यनुगतो निरूपित इति सूचयितुमाह- स एष सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगम इति । ततच सभेदोनियुक्त्यनुगमो निरूपित इति सूचयितुमाहस एष नियुक्त्यनुगम इति । एवं च भेदोषभेदसहितोऽनुगमो निरूपित इवि दर्शयितुमाह- स एषोऽनुकम इति ॥ मू० २४९ ॥ अथ नयाभिधं चतुमनुयोगद्वारमाह मूलम् - से कं तं गए? सत्त मूलणया पण्णत्ता, तं जहागमे संग पवहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूडे एवंभूए । तत्थ णेगेहिं माणेहिं, मिणइति णेगमस्स य निरुत्ती । सेसाणंपि नयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥ १ ॥ संगहियपिंडियत्थं, चाहिये । इस प्रकार से सूत्र जब व्याख्या का विषयभूत बनता तब सूत्र, सूत्रानुगम, सूत्रालापक निक्षेप, और सूत्रस्पर्शक नियुक्त्य नुगम ये सब युगपत् एक जगह मिल जाते हैं। उक्तं चापि 'सुप्तं, सुत्तागमो' इत्यादि इस प्रकार यह सूत्रस्पर्शक नियुक्त्यनुगम है । इसका निरूपण समाप्त होने पर नियुक्त्यनुगम का प्रकरण समाप्त हो जाता है और इसकी समाप्ति में अनुगम का कथन समाप्त हो जाता है । इस प्रकार यहां तक भेद उपभेद सहित अनुगम का निरूपण किया ० ॥ २४९ ॥ For Private And Personal Use Only 9 આ પ્રમાણે સૂત્ર જયારે વ્યાખ્યાના વિષયભૂત થાય છે, ત્યારે सूत्र, સૂજ્ઞાનુગમ, સૂત્રાલાપક નિક્ષેપ અને સુત્ર સ્પશ કનિત્યનુગમ એ સર્વે યુગ यतो स्थाने भाजी लय छे, उस्तथापि - 'सुत्तं सुत्ताणुगमो' त्याहि આ પ્રમાણે આ સૂત્રસ્પ`કનિયુ ત્યનુગમ છે. આ નિરૂપણુ સમાપ્ત થઈ જતાંજ નિયુક્ત્યનુગમ પ્રકરણ સમાપ્ત થાય છે, અને તેની સમાપ્તિ સાથે અનુગમ' કથન પણ સમાપ્ત થાય છે. આ પ્રમાણે અહી' સુધી ભેદ, ઉપભેદ સહિત અનુગમનું નિરૂપણુ કરવામાં આવ્યું છે. । સૂત્ર-૨૪૯ ૫

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