Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारस्ने पश्चचतुर्दशभागान् पश्चरज्जूः स्पृशन्ति । तथा देशविरति सामायिकवन्तोऽच्युत. सुरेषु इलिकागत्या समुत्पना लोकस्य पञ्च चतुर्दशभागान्पश्चरज्जूः स्पृशन्ति, शेषदेवलोकेषु समुत्पन्ना लोकस्य द्वे रज्जू त्रिस्रोरउजूश्चतस्रो वा रज्जूः स्पृशन्तीति । तदुक्तम् - सम्मत्तचरणसहिया, सब लोग फुसइ निरबसे ।
सत्त य चउदसभाए, पंच य मुयदेसविरईए ॥१॥ छाया-सम्यक्त्वचरणसहिताः सर्व लोक स्पृशन्ति निरवशेषम् ।
सप्त च चतुर्दशभागान् पञ्च च श्रुतदेशविरत्योः ॥१॥इति । उपर्युक्तेषु वस्तुषु ये गाथायां नोपलभ्यन्ते, ते च शब्दसंगृहीता बोध्या इति ।
इति पञ्चविंशतितमं द्वारम् ॥२५॥ में उत्पन्न होकर ५ पांच राजू प्रमाण लोक स्पर्श कर्ता माने जाते हैं। तथा-देशविरति सामायिक को धारण करनेवाले जीव अच्युतसुरों में इलिका गति से उत्पन्न होकर लोक के पांच राजू प्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करनेवाले होते हैं। शेषदेव लोकों में उत्पन्न हुए ये जीव लोक के दो राजू प्रमाण क्षेत्र का, तीन राजू प्रमाण क्षेत्र का अथवा चार राजू प्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करते हैं। तदुक्तम्-'सम्मत्तचरणसहिया' इत्यादि, इस गाथा का अर्थ यही पूर्वोक्त रूप से है । उपर्युक्त कथन के विषय में जो बात गाथा में उपलब्ध नहीं होती है वह यहां 'च' शब्द से संगृहीत हुई है ऐसा जानना चाहिये । जैसे दो राजू तीन राजू अथवा चार राजू स्पर्श करने का कथन इस गाथा में नहीं आया है, सो यह कथन यहां 'च' शब्द से कहा गया है, ऐसा समझ लेना चाहिये । इस प्रकार यह पच्चीसवां द्वार है। મરણ પામીને ઈલિકા ગતિથી છઠ્ઠી પૃથિવીમાં ઉત્પન્ન થઈને પંચ રાજુ પ્રમાણ લેકને સ્પર્શ કરનાર મનાય છે. તથા દેશવિરતિ સામાયિકને ધારણ કરનારા જ અમૃત સુશમાં ઈલિકા ગતિથી ઉત્પન્ન થઈને લેકના બે રાજુ પ્રમાણ क्षेत्रने ५५ ४२ छे. तदुतम्-'सम्मत्तचरणमहिया' इत्यादि थान। અર્થ આ પૂર્વોક્ત રૂપમાં જ છે. ઉપર્યુક્ત કથનના સંબંધમાં જે વાત ગાથામાં ઉપલબ્ધ થતી નથી તે અહીં “જ' શબ્દથી સંગૃહીત થયેલ છે. આમ જાણવું જોઈએ. જેમ બે રાજુ, ત્રણ રાજુ અથવા ચાર રાજુ સ્પર્શ થવાનું કથન આ ગાથામાં આવેલ નથી, તે આ કથન અહીં “' શબ્દથી કહેવામાં આવેલ છે. આમ સમજી લેવું જોઈએ. આ પ્રમાણે આ ૨૫ મુંકાર છે,
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