Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 884
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४९ सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगमनिरूपणम् ८६७ नोपन्यासः कृतः । अत एव सामायिकपदं नो सामायिकपदाप भेदेनोपन्यस्तम् । तथा-सामायिकपदं ज्ञास्यते । तथा-सामायिकव्यतिरिक्तानां नारतियगाद्यर्थीनां प्रतिपादकं यत्पदं तद् नो सामायिकपदं, तच्चापि ज्ञास्यते । सूत्रे समुच्चारिते एव स्वसमयादिपरिज्ञानं भवति, स्वसमयादिपरिज्ञानमेव सूत्रोच्चारणस्य फलं बोध्यमिति भावः। तस्मिन् सूत्रे उच्चारिते सति ततः केषांचिद् भगवता पूज्यमुनीनां यथोक्तनीत्या केचिदर्थाधिकारा अधिगता:=परिज्ञाता भवन्ति । तथा-केषांचिद् भगवतां पूज्यमुनीनां क्षयोपशमवैचिच्यात् केचित् अर्थाधिकारा अनधिगता अपरिज्ञाता भवन्ति । ततस्तेषामनधिगतानाम् अर्थाधिकाराणाम् अधिगमनाथ परिज्ञानाय पदेन पदं वर्णयिष्यामि पदों का भिन्नरूप से उपादान किया गया है । इसीलिये सामायिकपद तथा नो सामायिक पद ये दोनों पद भी भिन्नरूप से उपन्यस्त किये गये हैं । सामाधिक से व्यतिरिक्त नारक, तिर्यग् आदि अर्थों का प्रति. पादक जो पद हैं वह नो सामायिक पद है। सूत्र के समुच्चरित होने पर ही स्वसमयादि का परिज्ञान होता है, इसलिये स्वसमयादि का परिज्ञान ही सूत्रोच्चारण का फल है ऐसा जानना चाहिये। (तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिं च णं भगवंताणं केइ अस्थाहिगारा अहिगया भवंति) तथा-उस सूत्र के समुच्चारित होने पर कितनेक भगवंत-पूज्यमुनियों को अधिकार अधिगत-परिज्ञात हो जाते हैं। (केह अस्थाहिगारा अणहिगया भवति) तथा कितनेक अर्थाधिकार, क्षयोपशम की विचित्रता से अनधिगत रहते हैं । (तओ तेसिं अणहि गयाणं अहिगमणट्ठाए पयं पएणं वन्नइस्सामि) इसलिये उन मुनिजनों કરવા માટે અથવા શિષ્યજનેની બુદ્ધિની વિશદતા માટે એ અને પદનું નિરૂપમાં ઉપાદન કરવામાં આવેલ છે. એથી જ સામાયિક પદ તથા ને સામાયિક પદ એ બન્ને પદે પણ ભિન્ન રૂપથી ઉપન્યસ્ત કરવામાં આવેલા છે. સામાયિકથી વ્યતિરિક્ત, નારક, તિર્યગૂ વગેરે અર્થોના પ્રતિપાદક જે પદે છે, તે નેસામાયિક પદ છે. સૂત્રના સમુચ્ચારણથી જ સ્વસમયાદિકનું વિજ્ઞાન થાય છે, એથી સ્વ સયાદિનું પરિજ્ઞાન જ સૂત્રોચ્ચારણનું ફળ છે. એમ MEI नये. (तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिं च ण भगवंताणं केइ अत्थाहिगरा । अहिगया भवंति) तथा ते सूत्रना समुच्याथा टस मत - यमुनिमान। अर्थाधि२-मधिगत-परिज्ञान-थ लय छे (केइ अस्थाहि गारा अणहिंगया भवंति) तथा ४८मा अाधिता, क्षयोपशमनी, वियतया मनधिशत २ छे. (तओ तेसिं अणहिगयाणं अहिगमणद्वाए पयं पएणं वनइ For Private And Personal Use Only

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