Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 867
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. मनुयोगदारसूत्र प्राप्य ये ततः प्रपतितास्ते सम्यक्त्वादि सामायिकस्य प्रतिपधमानकेभ्यः पूर्वप्रतिपन्नकेभ्यश्चानन्तगुणाः, देशविरतिसामायिकमपतितास्तेभ्योऽसंख्येयगुणाः, सम्यक्त्वापतिताः पुनस्तेभ्योऽसंख्येयगुणाः, श्रुतमपतिता भाषालविरहिताः पृथिव्यादयस्तु तेभ्योऽनन्तगुणा इति । तदुक्तम् 'सम्मत्तदेसविरया, पलियस्स असंखभागमेत्ताओ । सेदी असंखमागो, सुए सहस्सग्गसो विरई ॥१॥ सम्मत्तदेसविरया, पडिवण्णा संपई असंखेज्जा । संखेज्जा य चरित्ते, तीसु वि पडिया अणंतगुणा ॥२॥ मुयपडिवण्णा संपइ, पयरस्स असंखेज्जभागमेत्ताओ। सेसा संसारत्या, सुयपडिवडिया हु ते सव्वे ॥३॥ छाया-सम्यक्त्वदेशविरताः पल्यस्यासंख्येयमागमात्रा। श्रेणिरसंख्यभागः श्रुते सहस्राप्रशो विरतिः ॥१॥ सम्यक्त्वदेशविरता: प्रतिपन्नाः सम्पत्यसंख्येयाः। संख्येयाश्च चारित्रे त्रिष्वपि पतिता अनन्तगुणाः ॥२॥ श्रुतप्रतिपन्नाः सम्पति प्रतरस्यासंख्येयभागमात्राः । शेषाः संसारस्थाः श्रुतपतिपतिताः खलु ते सर्वे ॥३॥ इति विंशतितमं द्वारम् ॥२०॥ होते हैं । इसका तात्पर्य यह है-कि चारित्र सामायिक को प्राप्त करके जो जीव उससे प्रपतित हो चुके हैं वे जीव इस सम्यक्त्व आदि सामायिक के प्रतिपत्ता जीवों से और पूर्वप्रतिपन्नक जीवों से अनंतगुणे होते हैं देशविरतिसामायिक से जो प्रपतित हुए हैं वे उनसे असं. ख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्वसामायिक से प्रपतित हुए हैं वे उनसे असं. ख्यातगुणें हैं, श्रुतसामाधिक से प्रपनित ऐसे भाषालब्धि रहित जो जो पृथिव्यादिक जीव हैं वे उनसे अनन्तगुणे हैं। तदुक्तम्-'सम्मत्त. છથી અનંતગણું હોય છે. દેશવિરતિ સામાયિકથી જે પ્રપતિત થયેલા છે, તેઓ તેનાથી અસંખ્યાત ગણું છે, સમ્યક્ત્વ સામાયિકથી પ્રપતિત થયેલા છે, તે તેમનાથી અસંખ્યાત ગણ છે, શ્રત સામાયિકથી પ્રપતિત એવા ભાષા લબ્ધિ રહિત જે પૃથિવ્યાદિક જે છે, તે તેમનાથી અનંતગણુ છે. તદુતમ For Private And Personal Use Only

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