Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वार वश्यकबद् बोध्यानि । भावाध्ययनमपि आगमतो-नो आगमतो-भेदेन द्विविधम् । तत्र आगमतो भावाध्ययनम्-ज्ञायक उपयुक्तो भवति । अस्यार्थस्तु-आगमतो भावावश्यकवद् बोध्यः। नो आगमतो भावाध्ययन तु एवं विज्ञेयम् , तदेवाह
दव्यज्झयणे) यहां तक का समस्त सूत्रपाठ द्रव्यावश्यक के जैसा ही भावित कर लेना चाहिये। विस्तार पूर्वक वहां समस्त पदों का अर्थ लिखा जा चुका है। (से कि त भावज्झयणे?) हे भदन्त ! भाव अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
उत्तर--(भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते) भाव अध्ययन दो प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे आगमओ या आगमओ य) एक आगम से और दूसरा ना आगम से । (से किं तं आगमओ भावज्झ. यणे ?) हे भदन्त ! आगम से भाव अध्ययन का क्या स्वरूप है ? (आगम भावज्झयणे)
उत्तर--आगम से भाव अध्ययन का स्वरूप इस प्रकार से है(जाणए उववत्ते) जो ज्ञायक होता है, वह उसमें उपयुक्त हो तब आगम से भावअध्ययन कहा जाता है। इसका खुलाशा अर्थ आगम से भावावश्यक के जैसा ही जानना चाहिये । (से तं आगमओ भावज्झयणे) इस प्रकार यह आगम की अपेक्षा लेकर भावअध्ययन
महिथी भांडी (से तं दत्वज्झयणे) अलि सुधान। समस्त सूत्र५४ द्रव्याવસ્થાની જેમ જ ભાવિત કરી લેવું જોઈએ. ત્યાં સમસ્તપદોને અર્થ વિસ્તાર ५४ awali मा०ये। छे. (से किं तं भावज्झयणे १) ३ मत ! बाप અધ્યયનનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते) मा अध्ययन में प्रश्न वामi मावत छ. (तं जहा) २४ (आगमओ य णो आगमओ य) मे भागमा सन द्वीतीय नो भागमयी (से किं तं आगमओ भावज्झयणे ?) 3 महत! भागमथी मा अध्ययनर्नु ५१३५ बुंछ ? (आगमनो भावज्झणे) उत्त२-मासभथी मा ५ध्ययनk २१३५ छ१ (आगमओ भावज्झयणे)
उत्तर-मासमयी मा माश्यउनु २१३५ मा प्रभारी छे. (जाणए उववत्ते) २ ज्ञ.43 14 छे, ते तमा ५युत डाय त्यारे सामथा मार અધ્યયન કહેવામાં આવે છે. આને સ્પષ્ટ અર્થ આગમથી ભાવાવશ્યકની भर on a न . (से तं आगमओ भावज्झयणे) प्रभाये
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