Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे टीका-- 'से कि त' इत्यादि
'अथ किं तद् नामनिष्पन्नम् ?' इति शिष्यपश्नः। उत्तरयति-नामनिष्पन्न -सामायिकम् । अध्ययनाक्षीणायपेक्षया सामायिकमिति विशेषनाम । सामायिकमिति चतुर्विंशतिस्तवादीनामप्युपलक्षणम् । तत्सामायिकं नामसामायिकस्थापना सामायिकद्रव्यसामायिकभावसामायिकेति चतुर्विधम् । तत्र नामसामायिक स्थापनासामायिक द्रव्यसामायिकं च नामावश्यकादिवत् व्याख्येयम् । भाव
अब सूत्रकार निक्षेत्र के द्वितीय भेद नामनिष्पन्न का कथन करते हैं--'से किं तं नामनिष्फण्णे ?' इत्यादि
शब्दार्थ--(से कितनामनिप्फण्णे ?) हे भदन्त ! नामनिष्पन का क्या स्वरूप है ? पूछनेवाले का यह अभिप्राय है कि- 'जो निक्षेप नाम निष्पन्न होता है उसका क्या तात्पर्य है ?"
उत्तर--(नाम निष्फणे सामाइए) नाम निष्पन्न सामायिक है। अध्ययन अक्षीण आदि की अपेक्षा 'सामायिक' यह नाम विशेष नाम है तथा सामायिक ऐसा विशेषनाम चतुर्विंशतिस्तव आदि का उपलक्षक होता है । इसलिये 'सामायिक' ऐसा नाम 'नाम निष्पन्न नाम' है । (से समासओ चउबिहे पण्णत्ते) वह सामायिक चार प्रकार का कहा गया है । (तं जहा। जैसे (णाममामाइए ठवणासामाइए दव सामाहए) नामसामायिक, स्थापनासामायिक, द्रव्यमामायिक, भावसामायिक । (नामठवणाओ पुत्वं भणियाओ) इनमें नाम सामा.
હવે સૂત્રકાર નિક્ષેપના દ્વિતીય ભેદ નામ નિષ્પન્નનું કથન કરે છે – 'से कि त नाम निष्फण्णे ?' इत्यादि ।
Avat--(से कि त नामनिप्पण्णे ?) 3 लत ! नाम निपननु સ્વરૂપ કેવું છે? પૂછનારને આ અભિપ્રાય છે કે જે નિક્ષેપ નામ નિષ્પન્ન હોય તેનું શું તાત્પર્ય છે?
उत्तर--(नामनिष्फण्णे सामाइए) नाम नियन्न सामयि छे. अध्ययन અક્ષીણ વગેરેની અપેક્ષાએ “સામાયિક આ નામ વિશેષ નામ છે, તેમજ સામાયિક એવું વિશેષ નામ ચતુર્વિશતિ સ્તવ આદિને ઉપલક્ષક હોય છે. सया सामायि' से 'नाम' नि0पन्न नाम छे. (से समाओ चउबिहे पण्णत्ते) ते सामायिनी या प्रा। अपामा मावेल छे (तजहा) अभ (णामसामाइए ठवणासामाइए, दव्वसमाइए भावसामाइए) नाम सामायि४, स्थापना समावि, द्र०य सामा४ि, मा सामायि: (नाम ठवणाओ पुत्वं
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