Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे इदानी सम्पति-नामनिष्पन्ननिक्षेपप्ररूपणानन्तरं जिज्ञासुः सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेपं प्ररूपयितुं माम् एषयति-नामनिष्पन्न निक्षेपमरूपणां कर्तुं मम वाञ्छामुत्पादयति । स च प्राप्तलक्षणोऽपि-निरूपणावसर प्राप्तोऽपि न निक्षिप्य ते मूत्रालापक निक्षेपद्वारेण नाभिधीयते । कस्मान निक्षिप्यते ? इत्याह-लाघार्थम् । लाघवमेवदर्शयति-अस्ति इतोऽग्रे तृतीयम् अनुयोगद्वारम् अनुगम इति। तत्र अनुममप्रकरणे निक्षिप्तः सूत्रालापकसमूह इहापि निक्षिप्त एव भवति, इहवा निक्षिप्तस्तत्रापि निक्षिप्त एव भवति तस्मादयम् इह न निक्षिप्यते, अपितु तत्रैव निक्षिप्यते । ननु बाद शिष्य की यह जिज्ञासा हुई 'सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप क्या है ? अतः शिष्य उस सूत्रालपक निष्पन्न निक्षेप को जानने की भावना से गुरु महाराज के लिये सूत्रालापक निष्पन्न की प्ररूपणा करने की प्रेरणा कर रहा है। दूसरी बात यह भी है कि-'नाम निष्पन्न निक्षेप की जब प्ररूपणा हो चुकी है, तब (से य पत्तं लक्खगेऽवि) इसकी प्ररूपणा होने का अवसर भी प्राप्त है-फिर भी (ण मिक्खिप्पइ) जो वह यहाँ प्ररूपित नहीं जा रहा है, उसका कारण (लाघवत्थं) लाघव हैं । (अत्थि. इओ तहए अणुओगदारे अणुगमेत्ति) और वह लाघव इस प्रकार से है कि-इसके आगे अनुगम इस नाम का तीसरा अनुयोगद्वार है। (तत्थ णिक्खित्ते इहं णिक्खित्ते भवह, इहं वा निक्खित्ते तत्थणिक्खित्ते भवह-तम्हा इहंग निक्खिपई तहिं चेत्र णिक्षिपद) सो उसमें सूत्रालापक समूह निक्षिप्त हुआ है। अतः वहां निक्षिप्त हुआ वह सूत्रालापक समूह यहां पर भी निक्षिप्त हुआ ही जैसा जानना નામ નિષ્પન્ન નિક્ષેપની પ્રરૂપણા પછી શિષ્યની આ જિજ્ઞાસા થઈ કે “સૂત્રા લાપક નિષ્પના નિક્ષેપ શું છે?” એથી શિષ્ય તે સૂવાલાપક નિપાન નિક્ષેપને જાણવાની ભાવનાથી ગુરુ મહારાજ પાસે સૂત્રલા૫ક નિષ્પન્ન નિક્ષેપની પ્રરૂપણ કરવાની પ્રેરણું કરી રહ્યા છે. બીજી વાત એક આ પણ छ, 'नाम निपन नियनी मारे ५३५! 25 ४ छे, त्यारे (सेय पत्तं लक्खणेऽवि) मानी ५३५४ान। अक्स२ ५५ प्रात छे, छताये (ण णिक्खिप्पई) ने 1 मही प्र३पित ४२वामा मान्य नथी, तेनु ४.२९ (लाघवत्थं) 1 छे. (अस्थि इओ तइए अणुओगदारे अणुगमेत्ति) भने त म मा પ્રમાણે છે, કે આના પછી અનુગમ આ નામે તૃતીય અનુયાગદ્વાર છે. (तत्थ णिक्खित्ते इहं णिक्खित्ते भवइ, इहं वा निक्खित्ते तत्थ निक्खित्ते भवइ, तम्हा इई ण निक्खिप्पई तहि चेव णिक्खिप्पइ) तमां सूत्रामा५४ समूह નિક્ષિપ્ત થયેલ છે. એથી ત્યાં નિશ્ચિત થયેલ તે સૂત્રાલાપક સમૂહ, અહીં પણ નિશ્ચિત થયેલ જ છે, આમ જાણી લેવું જોઈએ. તેમજ અહીં નિક્ષિપ્ત થયેલને
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