Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगन्द्रका टीका सूत्र २४७ सूत्रालापक निष्पन निरूपणम्
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छाया - अथ कोऽसौ सूत्रालापक निष्पन्नः ? सूत्रालापक निष्पन्नः - इदानीं सूत्रालापaनिष्पन्नं निक्षेपम् एषयति, स च प्राप्तलक्षणोऽपि न निक्षिप्यते, कस्मात् ? लाघवार्थम् । अस्ति इतस्तृतीयम् अनुयोगद्वारम् अनुगम इति । तत्र निक्षिप्त इह निक्षिप्तो भवति, इह वा निक्षिप्तस्तत्र निक्षिप्तो भवति तस्मात् इह न निक्षिप्यते तत्रैव निक्षिप्यते । स एष निक्षेपः ॥०२४७ ||
टीका - 'से किं तं' इत्यादि
ar aisa सूत्रालापनिष्पन्नः ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति सूत्रालापकनिष्पन्नो निक्षेपस्तु - 'करेमि भंते ! सामाइयं' इत्यादीनां सूत्रालापकानां नामस्थापमादि भेदभिन्नो यो निक्षेपः स बोध्य इति । सूत्रकारो हि सूत्रालापकनिष्पन्नं निक्षेपं वक्तु प्रेरितोऽपि न वक्ति, तत्र स स्वयमेव हेतुं वक्ति- 'इयाणी' इत्यादिना ।
अब सूत्रकार निक्षेप का जो तीसरा भेद है, उसका निरूपण करते हैं- 'से किं तं सुत्तालागनिष्कण्णे' इत्यादि ।
शब्दार्थ - - ( से किं तं सुत्तालावगनिप्फणे) हे भदन्त ! जो निक्षेप सूत्रालापकों से निष्पन्न होता है, वह क्या है ?
उत्तर--(सुसालावगनिष्फणे) सूत्रालापकों से निष्पन्न जो निक्षेप होता है वह - 'करेमि भंते सामाइय' इत्यादि सूत्रालापक हैं, उनका होता है और वह नाम स्थापना आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है । उस (सुत्तालागनिष्कण्णं) सूत्रालापक निष्पन्न (निक्खेवं ) निक्षेप को (याणि) इस समय कहने के लिये सूत्रकार (इच्छावेह ) शिष्य द्वारा प्रेरित किये जा रहे हैं क्योंकि नाम निष्पन्न निक्षेप की प्ररूपणा के
હવે સૂત્રકાર નિક્ષેપના ત્રિજા ભેદનું નિરૂપણ કરે છે ઃ-~~~
'से कि त सुत्तालागनिष्फण्णे' इत्यादि
शब्दार्थ : – (से किं त' सुत्ताला वगनि फण्णे) हे महंत ! भे निक्षेष सूत्राताय ।थी निष्यन्न होय हे, ते शु' हे ?
उत्तर:- (सुत्तालावगनिप्फण्णे) सूत्रासापोथी निष्पन्न ने निक्षेप डाय हे ते 'करेमि भन्ते सामाइय' इत्यादि ने सूत्रासार्थ छे, तेने हाय छे, मने ते नाभ स्थापना वगेरेना लेहथी भने प्रहारनो होय छे. ते ( सुत्तालागनिष्फण्णं) सूत्राखाय निष्पन्न (निक्खेव ) निक्षेपने ( इयाणि) मा वमते देवा भाटे सूत्रार (इच्छावेइ) शिष्यवडे प्रेरित हरवामां भावी रह्या छे,
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