Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४२ निक्षेपद्वारनिरूपणम् 'अज्झप्पस्साणयणं' इत्यादि । 'अज्झप्पस्स आणयणं-अज्झयणं' अत्र-निरूक्तविधिना माकृतविधिना वा 'प' कारस्य ‘स्स'कारस्य 'आ' कारस्य 'ण' कारस्य चलोपे 'अज्झपण' इति सिध्यति । अध्यात्म चित्तम् , तस्यानयनम्-अध्ययन मिति भावः। सामायिकाद्यध्ययने शोभनं चित्तमानीयते, सति च शोभने चित्तेऽशुभकर्मबन्धा का अर्थ है । (से कितने। आगमओ भावज्झयणे) हे भदन्त ! नो आगम से भाव अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
उत्तर--(नो आगम मो भावज्झयणे-अज्झप्पस्साणयणं कम्मार्ण अवचओ, उचियाणं अणुवचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छंति१) सामायिक आदि अध्ययन नो आगम से भाव अध्ययन हैं । 'अजपसाणयणं' में अज्झपस्स आणयणं ऐसा पदच्छेद होता है यह अध्ययन परक है । 'अझप्पस्साणयणं' में निरुक्त विधि से अथवा प्राकृत विधि से 'प' का 'रस' का 'आ' का और 'ण' का लोप होकर 'अध्ययन' ऐसा पद बन जाता है। वैसा तो 'अज्झप्परमाणयणं' की संस्कृत छाया' 'अध्यात्ममानयन' होती है । 'अध्यात्म' शब्द का अर्थ चित्त
और 'आनयन' शब्द का अर्थ लगाना है। तात्पर्य इसका यह है कि 'सामायिक आदि अध्ययन में चित्त का लगाना यह अध्यात्मनयन शब्द का अर्थ है । सामायिक आदि अध्ययन में चित्त के लगाने से चित्त में निर्मलताआती है । चित्त की निर्मलता होने पर अशुभ कर्मा मासमना अपेक्षा मामध्ययनन। अथ छे. (से किं तं नो भागमओ भावज्झयणे) 3 महत ! २ भागमयी ना१ मध्ययननु २१३५ ३ छ ?
उत्तर--(नो आगमओ भावज्झयणे अझ परसाणयणं कम्माणं अवधओ उपचियाणं अणुवच भो य नवाणं, तम्हा अज्मयणमिच्छंति ।१। सामायि माल अध्ययन सामथी मा अध्ययन। छे. 'अज्झप्पस्वाणयणं'भा 'अज्झप्पस्स आणयण' सवा ५४२छे डाय छ, मा ५६ मध्ययन ५२४ . 'अज्झप्पस्साणयणं' भां नित विधिथी अथवा प्राविधिथा पनि 'स' न अने 'ण न ५ २ अध्ययन मे ५४ मन छ. माम तो 'अज्झ. प्पस्त्राणयणं' नी सकृत छाय। 'अध्यात्ममानयन' थाय छे. अध्यात्म शन અર્થ ચિત્ત અને “આનયન' શબ્દનો અર્થ લગાડે છે. આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે “સામાયિક વગેરે અધ્યયનમાં ચિત્તનું સંયોજન કરવું આ અધ્યાત્મનયન શબ્દનો અર્થ છે. સામાયિક વગેરે અધ્યયનમાં ચિત્ત અજિત કરવાથી ચિત્તમાં નિર્મળતા આવે છે. ચિત્ત નિર્મળ થવાથી અશુભકને
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