Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगबन्द्रिका टीका सूत्र २३४ जघन्यसंख्ये यकनिरूपणम् सर्ष परूपेगाधिकं सम्पद्यते इति बोध्यम् । जघन्यकं संख्येयकं द्वौ । उत्कर्षक जघन्य. कयोमध्ये यानि संख्यास्थानानि तानि अजघन्यानुत्कर्षकाणि बोध्यानि । आगमे तु यत्र क्वापि अविशेषितस्य संख्येयकस्य ग्रहणं कृतं तत्र सर्वत्रानघन्यानुत्कर्षक बोध्यम् । इदंच उत्कर्ष संख्येयकमित्यमेव प्ररूपयितव्यम्, शीर्ष प्रहेलिकान्त राशिभ्योऽतिबहूनां समतिक्रान्तत्वात् प्रकारान्तरेण वक्तुमशक्यत्वादिति ।मु०२३४॥ जाते हैं और इनमें प्रत्येक में जब एक भी सर्षप का दाना डालने पर भी नहीं समासकता है तब उत्कृष्ट संख्यात होता है। इस प्रकार आमूलचूल पल्य के भरे होने पर उत्कृष्ट संख्यात एक सर्षपरूप से अधिक होते है ऐसा जानना चाहिये । इसका भाव यह है कि-- 'पूर्वोक्त प्रकार से पूर्वोक्त चारों पल्यों में जो सर्षप है तथा १ अनवस्थितपल्य २ शलाकापल्य, प्रतिशलाकापल्य के खाली करने और भरने के क्रम से जितने द्वीपसमुद्र व्याप्त हुए, उन दोनों की संख्या मिलाने पर जो संख्या आती है वह संख्या एक सर्षप अधिक, 'उत्कृष्ट संख्येय संख्या जाननी चाहिये जघन्य संख्यात का प्रमाण दो होता है। उस्कृष्ट और जघन्य के बीच में जितने भी सख्यास्थान हैं, वे सथ अजघन्य अनुस्कृष्ट हैं। आगम में जहां कहीं भी सामान्यरूप से जो संख्यात का ग्रहण किया हुआ मिलता है, वह अजघन्यानुस्कृष्टसरुपात का ग्रहण किया गया है, ऐसा ही जानना चाहिये । उस्कृष्ट संख्यात की प्ररूपणा કરવાથી જે સંખ્યા આવે છે, તે સંખ્યા એક સર્ષય અધિક, ઉટ સંખેય સંખ્યા જાણવી જોઈએ. જઘન્ય સંખ્યાતનું પ્રમાણુ બે હેય છે, ઉત્કૃષ્ટ અને જઘન્યની વચ્ચે જેટલાં સંખ્યા સ્થાને છે, તે સર્વે અજઘન્ય અનુકૂષ્ટ છે. આગમમાં જે કોઈ સ્થાને સામાન્ય રૂપથી જે સંખ્યાતન રહણ થયેલું મળે છે, તે અજઘન્યાનુકુષ્ટ સંખ્યાતનું ગ્રહણ કરવામાં આવ્યું છે. આમ જ જાણવું જોઈએ, ઉત્કૃષ્ટ સંખ્યાતની પ્રરૂપણ એવી જ છે. અને આ પ્રમાણે આની પ્રરૂપણ કરવી જોઈએ. શીર્ષપ્રહેલિકા
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