Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३७ भावसंख्यानिरूपणम्
८५ मूलम्-से किं तं भावसंखा? भावसंखा-जे इमे जीवा संखगइनामगोत्ताई कम्माइं वेदेति । से तं भावसंखा। से तं संखापमाणे। से तं भावप्पमाणे । से तं पमाणे पमाणेत्ति पयं समत्तं ॥सू.२३७॥
छाया-अथ के ते भावशङ्खाः ? मात्र शङ्खा:-य इमे जीवाः शङ्खगतिनामगोत्राणि कर्माणि वेदयन्ति । त एते भावशङ्खाः । तदेतत् संख्याप्रमाणम् । तदे तद् भावपमाणम् । तदेतत् प्रमाणम् । प्रमाणेति पदं समाप्तम् ॥सू० २३७॥ सहित अनंतक की प्ररूपणा किया। इस प्ररूपणा से भेद सहित गणना संख्यापूर्व से प्ररूपित हो चुकी ॥ सू० २३६ ॥
'से किं तं भावसंखा' इत्यादि ।
शब्दार्थ--(से किं तं भावसंखा?) हे भदन्त ! वे भावशंख क्या हैं ? (भावसंखा)
उत्तर--भावशंख इस प्रकार से हैं। (जे इमे जीवा संख गहनाम गोताई कम्माई वेदेति-से तं भावसंखा) जे। ये जीव कि-'जिन्हें केवली भगवान् प्रत्यक्ष से जान रहे हैं या जो लोक की प्रतीति के विषयभूत बने हुए हैं और आयु आदि प्राणों से युक्त बने हुए हैं तथा जो उदयरूप में शंखपर्याय के योग्य तिर्यगति आदि नाम कर्म को
और नीच गोत्र को वेद रहे हैं-भोग रहे हैं-वे भावशंख जीव है। (से तं संखापमाणे-से तं भावपमाणे से तं पमाणे-पमाणेत्ति पयं समत्त) इस प्रकार संख्यान प्रमाण समाप्त हो चुका । इसकी समाप्ति होने पर સહિત અનંતકનું પ્રરૂપણ કર્યું. આ પ્રરૂપણથી ભેદ સહિત ગણના સંખ્યા પૂર્ણ રૂપથી પ્રરૂપિત થઈ ગઈ છે. એ સૂત્ર-૨૩૬ છે
'से किं तं भाव संखा' इत्यादि ।
शहाथ---(से किं तं भाव संखा ?) 3 महन्त ! ते साशन शु'छे ? (भावस खा)
उत्तर-मा ५ मा प्रमाण छ. (जे इमे जीवा संख गइनामगोताई कम्माइं वेदेति-से त भावसंखा) २ मा वो है मन पक्षी ભગવાન પ્રત્યક્ષ રૂપમાં જાણી રહ્યા છે. અથવા જેઓ લેકપ્રતીતિના વિષય ભૂત થયેલ છે અને આયુ વગેરે પ્રાણોથી યુક્ત થયેલા છે, તેમજ જે ઉદય રૂપમાં શંખ પર્યાય ગ્ય તિર્યગૂ ગતિ આદિ નામ કર્મને અને નીચ जानने वही २॥ छ, मोवी २ छे, ते माप शो . (से तं संखापमाणे से तं भावप्पमाणे से तं पमाणे पमाणेचि पय समत्त) मा
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