Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगवन्द्रिका का सत्र २४१ क्षेत्रसमवतारादीनां निरूपणम् ७९ की अपेक्षा से आलिका में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है। आवलिका असंख्यात समय की होती है । इसलिये अपनी अपेक्षा वह वृहत् प्रमाणवाली है। अतः समयरूप काल को तदुभय समव. तार की अपेक्षा आवलिका के आश्रित रहना कहा है। तथा ऐसा होने पर भी वह अपने निजरूप का परित्याग नहीं करता है-इसलिये आत्म. भाव में भी उसका निवास प्रकट किया है । (एवमाणापाणू, थोवे, लवे, मुटुत्ते, अहोरत्ते, पक्खे मासे उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए वास. सहस्से, वाससयसहस्से, पुवंगे, पुव्वे तुडिअंगे, तुडिए, अडइंगे अडडे अववंगे, अबवे, हुहुअंगे, हुहुए, उपलगे, उप्पले पउमंगे, पउमे, णलिणंगे, गलिणे, अच्छनि उरंगे, अच्छनि उरे, अउअंगे, अउए, नउअंगे, न उए, पउअंगे, पउए, चूलिअंगे, चूलिया, सीसपहेलिअंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, आयसमोयारेण आयभावे, समोयरइ) इसी प्रकार आनप्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास ऋतु, अयन, संवत्सर युग, वर्षशत, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्वाङ्ग पूर्व, त्रुटिताङ्ग, त्रुटित, अटटाङ्ग अटट, अववाङ्ग अवव, हूहूकाङ्ग, हुहूक, उत्पलाङ्ग, उत्पल, पद्माङ्ग, पद्म, नलिनाङ्ग, नलिन, अच्छनिकुराङ्ग,
आयभावे य) तलय समक्तानी अपेक्षा के मामा ५५ २३ छे. सन આત્મભાવમાં પણ રહે છે. આવલિકા અસંખ્યાત સમયની હોય છે. એથી તે
અપેક્ષાએ બૂડત પ્રમાણુવાળી છે. એથી સમય રૂપકાળને તદુભય સમવતારની અપેક્ષા આવલિકાના આશ્રિત છે, એવું કહ્યું છે. તેમજ આમ થવાથી પણ તે પિતાના નિજ સ્વરૂપને પરિત્યાગ કરતા નથી. એથી આત્મભાવમાં પણ तनी निवासस्थिति ५५ ४२वामा मा छे. (एवमाणापाणू थोवे, लवे, मुहुत्ते, अहोरत्ते, पक्खे, मासे, उऊ अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए, वाससहस्से, पुव्वंगे, पुटवे, तुडिअंगे, तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे, अववे, हुहुअंगे, हुहुए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, गलिणंगे, णलिणे, अच्छनिउरंगे, अच्छनिउरे, अउअंगे, अउए, नउअंगे, नउए, पउअंगे, पउए, चूलिअंगे, चूलिया, सीसपहे. लिअंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, आयसमोयारेण आयभावे समोयरइ) मा प्रमाणे माना, स्त, ११, मुत, मात्र, पक्ष, भास, *तु, अयन, सवत्सर, युग, शत, १५ सख, पान, भू त्रुहितin, त्रुटित, मांग, मट, अqain, अ१५, , डूडू, Grvain, Gra ५, ५५, नलिना, नलिन, अक्षनिराग, अनि२, मयुतin, अयुत,
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