Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३८ वक्तव्यताद्वारनिरूपणम् टीका-'से कि तं' इत्यादि
अथ का सा वक्तव्यता ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-वक्तव्यता अध्ययनादिषु एक कस्य अवयवस्य यथासमवं यत् प्रतिनियतार्थकथनं तद्रूपा, साच स्व समयवक्तव्यता परसमयवक्तव्यता स्वसमयपरसमयवक्तव्यता चेति त्रिविधा तत्र स्वसमयवक्तव्यता एवं विज्ञेया, यथाहि-यत्र खलु वक्तव्यतायां स्वसमया=
अब सूत्रकार उपक्रम के क्रम प्राप्त चतुर्थ भेद का कि-'जो वक्तव्यता द्वार रूप है' निरूपण करते हैं--
'से किं तं वत्तवया ? इत्यादि ।
शब्दार्थ-(से कि त क्त्तव्वया ?) हे भदन्त ! पूर्वप्रक्रान्त वक्तव्यता का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-'अध्ययन आदिकों में प्रतिबद्ध एक एक अवयव का यथा संभव प्रतिनियत अर्थ का कथन करना इसका नाम वक्तव्यता है। और यह (वत्तव्वया) वक्तव्यता (तिविहा) तीन प्रकार की (पण्णसा) कही गई है। (तं जहा) उसके वे प्रकार ये हैं-(ससमयवत्तव्वया) स्वसमयवक्तव्यता (परसमयवत्तव्धया) परसमयवक्तव्यता (ससमयपरसमयवत्तव्यया) और स्वसमयपरसमयवक्तव्यता । (से किं तं ससमयवत्तव्वया) हे भदन्त ! स्वसमयवक्तव्यता क्या है ?
उत्तर-(ससमरवत्तव्या ) स्वसमयदत्तव्यता इस प्रकार से है
હવે સૂત્રકાર ઉપકમના કમ પ્રાપ્ત ચતુર્થ ભેદનું કે જે વક્તવ્યતા द्वा२ ३५ छे.' नि३५९५ ४२ छे--
से कि तं वत्तव्वया १ इत्यादि
शा--(से कि तं वत्तव्वया ?) हे मत ! पू न्त qxतव्यता સ્વરૂપ કેવું છે?
ઉત્તર--અધ્યયન આદિકમાં પ્રતિબદ્ધ એક એક અવયવના યથા सस प्रतिनियत अथर्नु ४थन ४२, १४तव्यता छे. अनेमा (वत्तव्यया) १तव्यता (तिविहा) त्रय प्रा२नी (पण्णत्ता) ४२वामा भावी छ. (तं जहा) सना रे। मा प्रमाणे छे. (ससमयवत्तव्वया) २१समय तव्यता, (परसमयवत्तव्वया) ५२समयवतव्यता (ससमयपरसमयक्त्तव्वया) भने समय ५२समयतव्यता. (से किं तं ससमयवत्तव्वया) मत! २१ समय વક્તવ્યતા શું છે?
उत्तर--(ससमयवत्तव्वया) २१ समय १तव्यता मा प्रमाणे छे. अ० ८७
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