Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
संख्यक माप्नुवन्ति, किन्तु यदा आमूकशिखं भृता भवन्ति, तत्र एकोऽपि सर्पपो न मायात्, तदा उत्कर्ष संख्येयकं भवतीति । ननु आमूलशिखमभृतमपि किं किंचिद् भृतमुच्यते ? सत्यम् - आमूल शिवममृतमपिलोके भृतमुच्यते । यथा कोऽप्यत्र दृष्टान्तोऽप्यस्ति ? इति शिष्येण पृष्टो गुरुराह - स यथा नामकः कश्चिन्मश्चः स्यात् आमलकैर्भृतः। स मञ्च आमूलशिखमभूतोऽपि लोके भृत इति व्यपदिश्यते । तत्र मचे एक आमलकः प्रक्षिप्तः सोऽपि तत्र मितः, ततः अन्योऽपि आमलकस्तत्र क्षिप्तः सोऽपि मितः पुनरन्योऽपि आमलकः प्रक्षिप्तः सोऽपि मितः एवम् = अमुना प्रकारेण प्रक्षिप्यमाणेन प्रक्षिप्यमाणेन आमलकेन भविष्यति सोऽपि
वास्तविक रूप में पूरा भरा हुआ नहीं होता है । आमूल चूल ठसाठस भरा रहने पर ही पूरा भरा माना जाता है फिर उस में एक सर्षप भी डालने पर नहीं समा सकता है तभी वहाँ उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्रारंभ होता है ।
शंका- क्या आमूलचूल नहीं भरे होने पर भी लोक में यह पूरा भरा है ऐसा कहा जाता है ? हां कहां जाता है। क्या इसे आप दृष्टान्त देकर समझा सकते हैं ? हां समझा सकते हैं। तो समझाइये (जहा को दितो इसमें कौन सा दृष्टान्त है ? सुनो-( से जहानामए मंचे सिया) जैसे कोई एक मंच (पल्प) हो और (आमलगाणं भरिए) आंवलों से भरा हो ( तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते सेऽवि माए ) उसमें एक आंवला यदि डाला जाता है तो वह भी समा जाता है । ( अण्णे वि
આવે છે. કેમ કે તે ખરેખર પૂર્ણ રીતે પૂરિત થયેલ નથી સંપૂર્ણ રીતે ઠાંસી-ઠાંસીને ભરેલુ. હાય તા જ પૂર્ણ-પૂતિ કહેવાય છે. તે પછી તેમાં એક સપ નાખવા જેટલી પણ જગ્યા રહેતી નથી. અને ત્યાંથી જ ઉત્કૃષ્ટ સખ્ય'તનુ` સ્થાન પ્રારભ થાય છે.
શંકા--શુ' પૂરેપૂરું ભરેલુ ન હોય છતાંએ લેકમાં આ સપૂર્ણ રીતે પૂતિ છે, આમ કહેવામાં આવે છે ? હા, કહેવામાં આવે છે. શુ તમે खाने दृष्टान्त सायने समभवी शो हो ? तो लड़े समन्नये ( जहा को दिट्टं तो) आमां हृष्टान्त यु छे ? ते सांली- से जहानामए मंचे श्रिया ) प्रेम होई गोड भय होय अने ते (आमलगाणं भरिए) सामणाोथी पूरित डेय (तत्थ एगे आमलगे पक्खित्ते सेऽवि माए ) तेमां से सामनु ले नामवामां आवे तो ते समाविष्ट था लय छे. (अण्णे वि पक्खित्ते
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