Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६४०.
अनुयोगद्वारको त्वात् । तत्र-वेष्टकाः छन्दोविशेषरूपाः । नियुक्तया निक्षेप नियुक्तय उपो. द्घातनियुक्तियः सूत्रस्पर्शनियुक्तयश्चेति त्रिविधाः। अनुयोगद्वाराणि व्याख्योपायभूतानि सत्पदमरूपणतादीनि उपक्रमादीनि वा। उद्देशका अध्ययनांश विशेषः । अध्ययनम्-शास्त्रांशविशेषः। श्रुतस्कन्धः = अध्ययनसम्हात्मकः शास्त्रांश: अङ्गम् आचाराङ्गादिकम् । इत्यं कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या निरूपितेति मुच यितुमाह-'सैषा कालिकश्रुतपरिमाणसंख्येति । तथा-दृष्टिबाद श्रुनपरिमाणासंख्याऽपि पर्यवसंख्या यावदनुयोगद्वारसंख्या प्राभृतसंख्या प्राभृतिकासंख्या होते हैं । वेष्टक नाम छंदविशेष का है। निक्षेप नियुक्तिउपोद्घातनियुक्ति, और सूत्रस्पर्शनियुक्ति के भेद से नियुक्तियां तीन प्रकार की होती है। व्याख्या के उपायभूत जो सस्पदप्ररूपणता आदि हैं वे अथवा जो उपक्रम आदि हैं, वे 'अनुयोगद्वार' है । अध्ययनों के अंश विशेष का नाम उद्देशक है' शास्त्र के अंशविशेष का नाम अध्ययन' है। अध्य. यनों के समूहरूप शस्त्रांश का नाम 'श्रुतस्कन्ध' है। आचाराङ्ग आदि आगों का नाम 'अंग है। इस प्रकार से 'यह कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? यह समझाया है। अब दृष्टिवाद परिमाणसंख्या क्या हैं? यह कहते है-(से कितं दिहिवायपरिमाणसंखा ?) हे भदन्त ! दृष्टिवादपरिमाणसंख्या क्या है ?
उत्तर - दिहियायालय परिमागतखा अणेगविहा पण्णत्ता ?) दृष्टि वादश्रुन परिमाणसंख्या अनेक प्रकार को कही गई है- (तं जहा) जैसे (पज्जवसंखा जाव अणुओगदारसंखा, पाहुडसंखा पाहुडियासंखा, पाहुનિર્યુક્તિ ઉપદુધાત નિર્યુકિત અને સૂત્રસ્પર્શ નિર્યુક્તિના ભેદથી નિર્યુકિતના ત્રણ પ્રકાર છે. વ્યાખ્યાના ઉપાયભૂત જે સત્પદ પ્રરૂપણતા વગેરે છે. તે અથવા તે જ ઉપક્રમ વગેરે છે તે અનુગદ્વાર છે. અધ્યયનના અંશ विशेषतुं नाम 'देश' छ. शाखा मशविशेषनु नाम 'अध्ययन' छे. सध्य. યોના સમૂહરૂપ શાસ્ત્રાંશનું નામ શ્રતસ્કન્ધ' છે. આચારાંગ વગેરે આગમેનું નામ “અંગ છે. આ રીતે કાલિકશ્રુત સંખ્યા શું છે? તે સમજાવવામાં मा०यु छ. टिपाई परिमाण सध्या शुछ ? विष ४३ छ. (से कि तदिद्विवायपरिमाणसखा १) महत!ष्टा परिभाय सध्या शुछ ।
उत्तर--(दिद्विवायसुयपरिमाणखा अणेगविहा पण्णता ?) पाह श्रत परिमाणुस-या मने प्रा२नी वामां मावी छे. (त जहा) २ (पज्जवस खा जाव अणुओगदारसखा, पाहुडसखा, पाहुडियासखा पाहुडपाहुडिया
For Private And Personal Use Only