Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
नन्यत्र पुत्रस्य मत्यविपयत्वादवानुमानयोगोऽनुचितः ? इति चेदाह - पुरुष - पिण्डपात्रदर्शनेऽपि 'अयं मत्पुत्रो न वा ?' इति संदेहाद युक्त एवानुमानप्रयोग इति ॥ इत्थं पूर्ववदनुमानं प्रदर्श सम्मति शेषादनुमानं प्रदर्शयति- 'से किं तं
'पक्षधर्मत्व आदि हेतु में रहें या नहीं रहें - परन्तु यह साध्यान्यथानुपपत्रस्वरूप लक्षण हेतु में अवश्य ही रहना चाहिये क्योंकि किसी भी स्थिति में हेतु इसके बिना गमक नहीं होता है अतः जहां यह है, वहां पक्षधर्मत्वादित्रय की मान्यता से क्या लाभ? और जहां यह नहीं है - वह पक्षधर्मत्वादित्रय हों भी तो भी हेतु उनके बल पर अपने सायका गम नहीं होता है। यही यात 'अन्यथानुपपन्नस्वं इत्यादि लोक द्वारा प्रतिपादिन की गई है।
शंका--' अयं मम पुत्रः अनन्यसाधारणक्षनादिलक्षणविशिष्ट लिङ्गवत्वात् ' इस अनुमानप्रयोग में जब पुत्र प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय बना हुआ है। तब अनुमानप्रयोग करने की क्या आवश्यकता है ? यह प्रयोग अनुचित है।
उत्तर- शंका ठीक नहीं है- क्योंकि पुरुष का पिण्ड मात्र दिखने पर भी 'अयं मत्पुत्रो नवा' यह मेरा पुत्र है या नहीं है । उसे ऐसा सन्देह हो रहा है। सो इस सन्देह से 'अयं मम पुत्र: अनन्यसाधारणक्षतादिलक्षणविशिष्टलिङ्गवत्वात्' ऐसा अनुमान प्रयोग युक्त ही
રહે કે ન રહે, પરંતુ સાધ્ધાન્યથાનુપપન્ન રૂપ લક્ષણ હેતુમાં ચાક્કસ રહેવુ' જ જોઈ એ કેમકે કાઈપણ સ્થિતિમાં હતુ એના વગર ગમક થતા નથી, તેથી જ્યાં આ છે, ત્યાં પક્ષધમાદિ ત્રયની માન્યતાથી શૈા લાભ અને જ્યાં આ નથી. ત્યાં પક્ષધર્માદિ ત્રય હાય છતાંએ હેતુ તેના ખળે घोताना साध्या गंभ होतो नथी. से वात 'अन्यथानुपपन्नत्व' वगेरे Àક વડે પ્રતિપાદિત કરવામાં આવી છે.
- 'अयं मम पुत्रः अनन्यसाधारणक्षतादिलक्षणविशिष्टलिंगवत्वात् ' આ અનુમાન પ્રયાગમાં જ્યારે પુત્ર પ્રત્યક્ષ જ્ઞાનના વિષય બનેલ છે, ત્યારે અનુમાન પ્રયાગ કરવાની શી જરૂર છે? આ પ્રયાગ અનુચિત્ત છે.
ઉત્તર--શકા ખરાખર નથી. કેમકે પુરૂષના પિંડ માત્ર જોવાથી પશુ 'अयं मत्पुत्रो नवा' या भारी पुत्र छे है नहीं, तेने या भतने। सहेड था रह्यो छे. तो अहेड्थी 'अयं मम पुत्रः अनन्यसाधारणक्षतादिलक्षणविशिष्ट लिङ्गवत्वात्' એ જાતના અનુમાનના પ્રયાગ ચુત જ છે. શેષવત્ અનુમાન સબંધમાં આ
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