Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२६ चारित्रगुणप्रमाणनिरूपणम् मानकेति द्विविधम् । तत्र श्रेणिमारोहतो विशुध्यमानकं मुक्षरसम्परायं भवति । श्रेण्याः प्रच्यवतस्तु संक्तिश्यमानकं भवति । पञ्चमं यथाख्यातचारित्रगुणममाणम्पथा शब्दो याथातथ्ये, 'आङ् शब्दोऽभिविधौ, यथा याथातथ्येन आ-समन्तात् रूपातम्-यथाख्यातम्-कषायोदयाभावतो निरतिचारत्वात् पारमार्थिकरूपेण ख्यातमित्यर्थः । एतत् प्रतिपात्यपतिपातिभेदेन द्विविधम् । तत्र उपशान्तमोहस्य पतिपाति भवति क्षीण मोहस्य स्वप्रतिपाति । अथवेदं छानस्थिकं वैवलिक चेति यह संक्लिश्यमानक और विशुध्यमानक के भेद से दो प्रकार का होता है। इनमें जो जीवश्रेणी पर आरोहण करता है, उसका सूक्ष्म संपराय चारित्र विशुध्यमानक होता है और जो जीव श्रेणि से च्युत हो जाता है उसका सूक्ष्मसंपरायचारित्रसंक्लिश्यभानक होता है। (अह. क्खायचरित्सगुणप्पमाणे दुषिहे पण्णत्तेत जहा-पडियाई व अप्पडि. वाई य, अहया अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तं जहाछउमस्थिए य केवलिए य) यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का होता है । एक प्रकार है प्रतिपाति और दूसरा प्रकार है अप्रतिपाति । इस चारित्र में कषायोदय नहीं रहता है, उसका सर्वथा अभाव हो जाता है इसलिये इसमें किसी भी प्रकार का अतिचार नहीं लगता, अतः यह चारित्र पारमार्थिकरूप से प्रसिद्ध हो जाता हैं-यही यथाख्यात चारित्र शब्द का अर्थ है । इसके दो भेद हैं एक प्रतिपाति और दूसरा अप्रतिपाति । जिस जीव का मोह उपशांत होता है, उसका यह चारित्र प्रतिपाति होता है और जिस जीव का मोह सर्वथा क्षीण हो બે પ્રકારનું હોય છે. તેઓમાં જે જીવશ્રેણી પર આરોહણ કરે છે, તેનું સૂક્ષ્મ સંપરાય ચારિત્ર વિશુદ્ધમાનક હોય છે, અને જે જીવશ્રેણીથી-ટ્યુત
। १५ छ, तनुं सू३५. स.५२॥य यात्रि विश्यमान डाय छे. (अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे दुविहे पण्णते-त जहा-पडिवाईय अप्पडिवाईय अहवा अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तं जहा- उमथिए य केवलिए य) યથાખ્યાત ચારિત્ર ગુણ પ્રમાણ બે પ્રકારનું હોય છે. એક પ્રતિપાતિ અને બીજુ અપ્રતિપાતિ. આ ચારિત્રમાં કષાયદયનો સદ તર અભાવ રહે છે, તેથી આમાં કઈપણ જાતના અતિચારની સ્થિતિ ઉન્ન થતી નથી, એટલા માટે આ ચારિત્ર પારમાર્થિકરૂપમાં પ્રસિદ્ધ થઈ જાય છે. એ જ યથાખ્યાત ચારિત્ર શબ્દને અર્થ છે. એના બે પ્રકાર છે, એક પ્રતિપાતિ અને બીજુ અપ્રતિપતિ જે જીવને મોહ ઉપશાંત હોય છે, તેનું આ ચારિત્ર પ્રતિપાતિ હેય
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