Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२७ प्रस्थकदृष्टान्तेन नयप्रमाणनिरूपणम् ५६७ ऋजुसूत्रस्य प्रस्थकोऽपि प्रस्थकः मेयमवि प्रस्थतः । प्रयाणां शब्दनयानां प्रस्थ कस्य अर्थाधिकारज्ञायको यस्य वा वशेन प्रस्थको नियते । तदेतत् प्रस्थक दृष्टान्तेन ॥मू० २२७॥
दोका-से कि तं' इत्यादि
अथ किं तत् नयप्रमाणम् ? इति शिष्यपश्नः । उत्तरयति-नयममाणम्नीतयो नया:--अनन्तधर्मात्मकस्य वस्तुन एकांशपरिच्छित्तयः, त एव प्रमाणं नया प्रगणम् । तम पाथकदृष्टान्तेन वसतिदृष्टान्तेन २ देशदृष्टान्तेन च निरूप्यमाण. वास्त्रिविधम् । प्रस्थकादि दृष्टान्तत्रयेण हेतुभूतेन त्रिविधं नयप्रमाणं भवती. भी जानना चाहिये। ( मंगहस्स चियमियमेज्जसमारूतो पत्थो) संग्रालय के मतानुसार धान्य से पूरा भरा हुआ ही वह प्रस्तक कह. लावेगा। (उज्जुसुयरस पत्थमो वि पत्थो मेज्जपि पस्थओ) ऋजु सूत्र नय के अनुसार प्रस्थक भी स्थक है और धान्यादिक भी प्रस्थक हैं। (तिण्हं सहनयाणं पत्थयस्स अस्थाहिगार जाणो जस्स वा वसेणं पत्थओ निष्फज्जह, से तं पत्थयदिटुंतेण) तथा शब्द, समभिरूढ
और एवंभूत इन तीनों नयों के मन्तव्यानुसोर जो प्रस्थक के स्वरूप के परिज्ञान में उपयुक्त है वह प्रस्तक कहलाता है क्योंकि जिसके प्रयास से प्रस्थक बना है। इस प्रकार यह प्रस्तक के दृष्टान्त से नयरूप प्रमाण का स्वरूप कथन जानना चाहिये।
भावार्थ---स सूत्र द्वारा सूत्रकारने नय के स्वरूप का कथन प्रस्तक के दृष्टान्त द्वारा प्रदर्शित किया है । नैगम, संग्रह व्यवहार, ऋजु मत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत इस प्रकार से ये सात नय हैं-इन में २. (संगहस्स चियमियमेज्जसमारूढो पत्थओ) सहनयाना मत भुराम धान्यपूरित प्रस्थ ४ ५२५४ना नामे मनिहित री शाय छे. (उज्जु सुयस पत्थओ वि पत्थओ मेज्जंपि पत्थओ) *सूत्र नय भुक्षण ५२५४ प ५२५४ छ भने धान्याहि पए प्रस्थ४ छ. (तिण्हं सदनयाणं स्थयरस अत्याहिगारजाणओ जस्स वा पत्थओ निष्फज्जइ, से त पत्थयदि;તે) તેમજ શબ્દ, સમમિરૂઢ અને એવભૂત આ ત્રણે નાના મન્તવ્યાનુસાર જે પ્રસ્થાના સ્વરૂપના પરિજ્ઞાનમાં ઉપયુકત છે, તે પ્રસ્થક કહેવાય છે કેમકે એમના પ્રયાસથી પ્રસ્થક તૈયાર થયેલ છે. આ પ્રમાણે આ પ્રસ્થકના દૃષ્ટાન્તથી નયપ પ્રમાણનું સ્વરૂપ કથન જાણવું જોઈએ.
ભાવાર્થ-આ સૂત્રવડે સૂત્રકારે નયના સ્વરૂપનું કથન પ્રસ્થકના દૃષ્ટાન્ત વડે પ્રદર્શિત કર્યું છે. નગમ, સંગ્રહ વ્યવહાર, ઋજુ સૂત્ર શબ્દ, સમભિરૂઢ અને એવંભૂત આ પ્રમાણે એ સાત ન છે. આમાં જે પ્રથમ નૈગમન
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