Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगद्वारसूत्र रामि । तं च कोऽपि विलिवन्तं दृष्ट्वा वदति, कि त्वं विलिखसि ? विशुद्धतरको नैगमो भणति प्रस्थकं विलिखामि । एवं विशुद्धतरस्य नैगमस्थ नामाकुट्टितः प्रस्थ कः । एवमे। व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य चितमितमेयसमारूढः प्रस्थकः । ने प्रस्थक के निमित्त काष्ठ के मध्यभाग को निकालते हुए देखा-तो देवकर पूछा यह तुम क्या कर रहे हो-तब उसने विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्राय के वशवर्ती बनकर उत्तर दिया मैं प्रस्थक को उकेर रहा हूं। (तं च के विलिहमाण पासित्ता वएज्जा, किं तुवं विलिहसिविसुद्धतराओ णेगमो भगइ, पत्थयं विलिहामि) जब वह उस उत्कीर्ण काष्ठ पर लेखनी से प्रस्थक बनाने के लिये चिह्नित करने लगा अर्थात् प्रस्थक के आकार की रेखाएं करने लगा तब उसे इस प्रकार देखकर किसीने उससे पूछा तुम यह क्या कर रहे हो-तब उसने विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्राय वशवर्ती होकर कहा मैं प्रस्तक के आकार को अंकित कर रहा हूं। (एवं विसुद्धतरस्त णेगमस्सनामाउडिओ पत्थओ) उक्त रीति से इस प्रस्थक विषय में इस प्रकार से वहां तक प्रश्नोत्तर रूप में कहते चला जाना चाहिये कि जब तक विशुद्धतर नैगमनय का विषयभूत वह संकल्पित नाम प्रस्थक बनकर तैयार न हो जावे। (एव मेव ववहारस्स वि) इसी प्रकार से व्यवहार नय को आश्रित करके
જ્યારે તેને કેઈએ પ્રસ્થક-નિમિત્ત કાષ્ઠના મધ્યભાગને કહાડતાં જે તે તે જેઈને પૂછયું-“આ તમે શું કરી રહ્યા છે ? ત્યારે તેણે વિશુદ્ધતર નિગમ નય મુજબ જવાબ આપતાં કહ્યું કે હું પ્રસ્થક ઉત્કીર્ણ કરી રહ્યો છું. (तच केइ विलिहमाणं पासित्ता वएन्जा, कि तुवं विलिहसि-विसुद्धतराओ णेगमो भणइ पथयं विलिहामि) न्यारे ते Grsh ष्ठ ७५२ लेमनी पडे પ્રસ્થક માટે ચિહ્નો કરવા લાગે એટલે કે પ્રથકના આકારની રેખાઓ ઉકીર્ણ કરવા લાગે ત્યારે તેને આ પ્રમાણે કરતે જોઈને કેઈએ પૂછ્યું, તમે આ શું કરી રહ્યા છે. ત્યારે તેણે વિશુદ્ધતર નામનયના મત મુજબ घुछ ईप्रस्थ11 मारने मत रह्यो छु. (एवं विसुद्धतरस्स णेगमस्स न माउडिओ पत्थओ) मा प्रस्न समयमा 6५२ भुराण त्यां સુધી પ્રશ્નોત્તર કરતાં રહેવું જોઈએ કે જ્યાં સુધી વિશુદ્ધતર નિગમનને વિષયભૂત તે સંપિત નામ પ્રસ્થક સંપૂર્ણ રીતે તૈયાર ન થઈ જાય. (एवमेव ववहारस्ववि) मा प्रमाणे व्यपा२नयने माश्रित शने ५y are
For Private And Personal Use Only