Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२९ प्रदेशदृष्टान्तेन नयप्रमाणम् दीनां पञ्चानां प्रदेशद्वयादिनिष्पन्नः, तस्य प्रदेशो देशपदेश इति । धर्मास्तिकाया. दिषु प्रदेशस्य सामान्येन सत्वात् षण्णां प्रदेश इत्युक्तम् । विशेषविवक्षायां तु षट् प्रदेशा इति वक्तव्यम् । एवं वदन्त नैगमं ततो निपुणः संग्रहनयो भणति, यत् भणसि-पण्णां प्रदेश इति, तन्न भवतिनन्न युज्यते । कस्मात्तन्न युज्यते ।
स्कंध है इस स्कन्ध का जो प्रदेश है स्कंधप्रदेश है । धर्मास्तिकायादिक इन पांच द्रव्यों के दो आदि प्रदेशों से जो निष्पन्न होता है, उसका नाम देश है। इस देश का जो प्रदेश है, वह देशप्रदेश है। धर्मास्ति. कायादिकों में सामान्य रूप से प्रदेश की सत्ता रहती है इसलिये षण्णा पदेशः' ऐमा नैगमनय ने कहा हैं । और जब विशेष विवक्षा होती हैसब वही नैगमनय षण्णां प्रदेशाः' षट् प्रदेशाः' ऐसा बहुवचनान्त प्रयोग भी करता है। तात्पर्य कहने का यह है कि-'नैगमनय सामान्य और विशेष इन दोनों को ग्रहण करनेवाला होता है। अतः जब धर्मास्ति. कायादिक द्रव्यों में प्रदेश सामान्य की विवक्षा से प्रदेश व्यवस्था की जाती है, तब नेगम नय षट् प्रदेश शब्द का समास 'षण्णां प्रदेशः षट् प्रदेशः' ऐसा एकवचनान्त शब्द परक करता है और जब प्रदेश विशेष विवक्षा की जाती है, तब 'षण्णां प्रदेशाः प्रप्रदेशाः, ऐसा बहुवचनान्त शब्द परक करता है। (एवं वयं णेगम संगहो भणइ) नैगमनप के इस कथन को सुनकर निपुण संग्रहनय ने उससे સ્કંધ છે. આ કથને જે પ્રદેશ છે તે સ્કંધ પ્રદેશ છે. ધર્માસ્તિકાયાદિક આ પાંચ દ્રવ્યના બે વગેરે પ્રદેશોથી જે નિષ્પન થાય છે, તે દેશ કહેવાય છે. આ દેશને જે પ્રદેશ છે, તે દેશ પ્રદેશ છે. ધર્માસ્તિકાયાદિકોમાં સામાન્યરૂપથી प्रशनी सत्ता २७ छ, मेथी "अण्णां प्रदेशः' मा नरामनये युछे. सन क्यारे विशेष विषक्षा डाय छे, त्यारे तनामनय "पण्णां प्रदेशाः षट् प्रदेशाः" એ બહુવચનાન્ત પ્રયોગ કરે છે, તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે
ગમનય સામાન્ય અને વિશેષ એ બંનેને ગ્રહણ કરનાર હોય છે, એથી જ્યારે ધર્માસ્તિકાયાદિક દ્રવ્યોમાં પ્રદેશસામાન્યની વિવક્ષાથી પ્રદેશવ્યવસ્થા ४२५मा आवे छे, त्यारे नेशमानय पट प्रशन। समास “षण्णां प्रदेशः षट् प्रदेशः" भाम मे क्यनान्त ५६ ५२४ ४२ . भने न्यारे प्रदेश विशेषना (११क्षा ४२वामां आवे छे, त्यारे "पण्णां प्रदेशाः षट् प्रदेशाः" माम मक्य. नान्त श६ ५२४ ४२१ामां आवे छे. (एवं वयं णेगम संगहो भणइ) नशमनयना मा पनने सामान निपुण सनये तने बु. (ज भणसि
अ० ७५
For Private And Personal Use Only