Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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igeriefद्रका टीका सूत्र २२७ प्रस्थकदृष्टान्तेन नयप्रमाणे निरूपणम् ५६५
त्व
मस्काय गच्छामि । तं च कोऽपि छिन्दन्तं दृष्ट्वा वदति-किं छिन्दसि त्रिशुद्धो नैगमो भणति - प्रस्थकं छिनद्मि तं च कोऽपि तक्षन्तं दृष्ट्वा वदति, किं त्वं क्षसि ? विशुद्धको नैगमो भगति - प्रस्थक तक्षामि । तं च कोऽपि उल्कितं दृष्ट्रा वदति विमुरिकरसि विशुद्धतरको नैंनो भणति - प्रस्थकम् उत्क
हुआ देखकर (केई एज्जा) किसी ने उससे पूछा- (कहिं तुयं गच्छसि ? ) तुम कहां जा रहे हो (अविसुद्धो नेगमो भणह) तब उससे अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार होकर कहा - (पथगस्स गच्छामि ) मैं प्रस्थक (पायली) लेने के लिये जा रहा हूँ । ( तं च केई छिंदमाणं पासित्ता वजा, कि तुवं छिंदसि ? विस्रुद्धो नेगमो भणइ - पत्थयं छिंदामि ) जब वह प्रस्थक बनाने के निमित्त किसी वृक्ष को छेदने लगा । तब यह देखकर उससे किसी ने पूछा कि तुम यह क्या छेद रहे हो-तब उसने विशुद्ध नैगम नय के मतानुसार होकर ऐसा कहा- मैं प्रस्थक छेद रहा हूं । (तं च कोई तच्छमार्ण पासित्ता वएजा, किंतुवं तच्छसि ?) जब वह काष्ठ को छीलने लगा तब उससे किसीने ऐसा पूछा कि 'यह तुम क्याछोल रहे हो ? (विसुद्धतराओ गमो भणह) तब विशुद्धतर नैगमनय के मतानुसार होकर उसने उत्तर दिया (पत्थयं तच्छामि ) मैं प्रस्थक छील रहा हूं । (तं च केह उक्कीरमाणं पासित्ता वएज्जा, किं तुवं उक्की: रसि ? विद्वतराओ गमो जेणह पत्थयं उक्कीरामि) जब उसे किसी
मेछो तेने अश्न भ्यो. ( कहि तुवं गच्छसि १ ) तमे यां ४४ रह्या छो. (अविसुद्धो नेगमो भणई) त्यारे तेथे अविशुद्ध नैगमनयना मत भुण धुं. (पत्थर गच्छामि) हुँ प्रस्थ सेवा कर्ध रह्यो भुं. (तं च केई छिरमाणं पाखित्ता वपज्जा, किं तुवं छिंदासि १ विसुद्धो नेगमो भणइ पत्थयं छिदामि) न्यारे ते प्रस्थ तैयार रखा भाटे अर्थ वृक्षने वा तत्पर थये। ત્યારે તેને આમ કરતા જોઇને કાઇએ આ પ્રમાણે પૂછ્યુ કે તમે આ શુ કાપી રહ્યા છે ?, ત્યારે તેણે વિશુદ્ધ નૈગમનય મુજબ આ પ્રમાણે જવામ माया है 'हु' अस्थायी रह्यो छु . (तं च केई तच्छमाणं पासित्ता वजा, कि तुवं तच्छसि ?) क्यारे ते अष्टने छोटवा लाग्यो, त्यारे ते माणुसने अर्धो पूछयु है या तभे शुद्ध छोती रह्या छ ? (विसुद्वतराओ गमो भणड्) त्यारे विशुद्धतर नैगमनय मुल्य तेथे श्वास मान्य है ( पत्थयं तच्छामि ) हु प्रस्थ छोटी रह्यो छ. (तं च केइ उक्कीरमाणं पाखित्ता वपज्जा, कि तुवं उक्कीरसि १ विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - पत्थयं उक्कीरामि )
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