Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२३ उपमानप्रमाणनिरूपणम्
५२७ विशेषदृष्टमिति । एवं च दृष्टपाधर्मवदनुमानमपि निरूपितमिति सूचयितुमाहतदेतत् दृष्टसाधर्म्यवदिति । इत्थमनुमानमपि प्ररूपितमिति सूचयितुमाह-तदेतदनु मानमिति ॥ सू० २२२ ॥ अथोपमानं निरूपयति--
मूलम्-से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे-दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य। से किं तं साहम्मोवणीए ? साहम्मोवणीए-तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-किंचिसाहम्मोवणीए, पायसाहम्मोवणीए, सव्वसाहम्मोवणीए। से कि तं किंचिसाहम्मोवणीए ? किंचिसाहम्मोवीएजहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो, जहा आइच्चो तहा खजोओ, जहा खजाओ तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुमुदो, जहा कुमुदो तहा चंदो । से तं किंचिसाहम्मोवणीए। से किं तं पायसाहम्मोवाए ? पायसाहम्मोवणीए-जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ तहा गो। से तं पायसाहम्मोवणीए।
सय विषय' 'से किं तं अतीयकालग्गहणं' यहां से लेकर 'से तं अणागयकालग्गहणं' यहां तक के सूत्रपाठ द्वारा सूत्रकार ने समझाया है। (से तं विसेसदिड-से तं दिसाहम्मवं) इस प्रकार यह विशेषदृष्ट दृष्टसाधयंवत् का स्वरूप है । सामान्य दृष्ट और विशेष दृष्ट के स्वरूपों के इस निरूपण से दृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान का स्वरूप निरूपित हो चुका ॥मू० २२२ ॥ विषय “से कि त अतीयकालगहणं" सही थी भांश “से तं अणागयकालग्गहण" मही सुधीना सूत्रपा 43 सूत्रारे २५०८ या , (से तं विसेसदिट्र-से तं दिटुसाहम्म) मा प्रभाए 4 विशेष ४०८ ६७८ साम्यवत्नु २१३५ . સામાન્ય દષ્ટ અને વિશેષ દષ્ટ સ્વરૂપના આ નિરૂપણથી દષ્ટ સાધમ્યવતું અનુમાનનું સ્વરૂપ નિરૂપિત થઈ જાય છે. જે સૂ. ૨૨૨
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