Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____ अनुयोगद्वारसूत्र संस्थानगुणप्रमाणं वृत्तसंस्थानगुणप्रमाणं व्यस्रसंस्थानगुणप्रमाणं चतुस्रसंस्थानगुणप्रमाणम् , आयतसंस्थानगुगप्रमाणम् । तदेतत् संस्थानगुणप्रमाणम् । तदेतत् अजीवगुणप्रमाणम् ॥ सू० २१९ ॥
टीका-'से कि तं' इत्यादि
अथ किं तद् गुगपमाणम् ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-गुणप्रमाणम्प्रमितिः प्रमाणम् , प्रमीयतेऽनेनेति वा प्रमाणम् , प्रमीयते यत्तद्वा प्रमाणम् । प्रमाण है । (से किं तं संठाणगुणप्पमाणे ?) हे भदन्त ! वह संस्थान गुण प्रमाण क्या है ? (संठाणगुणपमाणे पंचविहे पण्णत्ते)
उत्तर--संठाण गुणप्रमाण पांच प्रकार का कहा गया है। (जहा) जैसे-(परिमंडलठाणगुणप्पमाणे) परिमंडसंस्थानगुणप्रमाण, ( वट्टसठाणगुणपमाणे) वृत्तसंस्थानगुणप्रमाण (तं तसंठाणगुणपमाणे) ज्यस्त्र संस्थानगुणप्रमाण (चउरससंठाणगुणप्पमाणे) चतुरस्र संस्थान गुणप्रमाण (आपय ठाण गुणप्पमाणे) आयतसंस्थानगुणप्रमाण, (से तं संठाणगुणपमाणे) यह संस्थानगुणपमाण हैं। (से तं अजीवगुणप्पमाणे) इस प्रकार पूर्वप्रकान्त अजीव गुणप्रमाण हैं।
भावार्थ-यह पहिले स्पष्ट कर दिया है कि 'प्रमाण शब्द की व्युत्पत्ति भाव, करण और कर्म इन तीनों साधनों में होती है। 'पमितिः प्रमाणम्' यह प्रमाण शब्द की व्युत्पत्ति भावसाधन में है। "प्रमीयते अनेन" यह शब्द की व्युत्पत्ति करणसाधन पक्षमें है "प्रमीयते यत् तत्प्रमाणम्" यह प्रमाणशब्द का व्युत्पत्ति कर्म साधनमत ! ते संस्थान गुमाय शुछ १ (संठाणगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते)
उत्तर-सस्थान गुमाए पांय प्रारनु उडेवामा मा०यु छ. (त जहा) २म (परिमंडलसंठाणगुणप्पमाणे) परिमाण संस्थान गुमाए (वट्टसंठाग गुणपमाणे) वृत्तस स्थान शुष्प्रमाणु (तससंठाणगुणप्पमाणे)
यस संस्थान प्रमाण (चउरंससंठाणगुणप्यमाणे) यतु संस्थान शुमार (आययसंठाणगुणप्पमाणे) भायत संस्थान गुए प्रमाण (से त संठाणगुणप्पमाणे) मा शते २थान शुष्प प्रभा छे. (से त अजीवगुणप्पमाणे) આ પ્રમાણે પૂર્વ પ્રકાન્ત અજીવ ગુણ પ્રમાણ છે.
ભાવાર્થ–આની પહેલાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે કે પ્રમાણ શબ્દની व्युत्पत्ति ल. ४२५ भने म ! ये साधनामा हाय छे. 'प्रमितिः प्रमाणम्' मा प्रमाण २०४नी व्युत्पत्ति का साधनमा छ. 'प्रमीयते अनेन' या प्रमाण शनी व्युत्पत्ति ४२६१ साधन पक्षमा छे. 'प्रमीयते यत्
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