Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१७ व्यन्तरादीनामौदारिकादिशरीरनि। ४७७ शरीराणि बद्धमुक्तेति द्विविधानि । तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खलु असंख्येयानि । तानि कालतोऽसंख्येयोत्सपिण्यवसर्पिणीसमयराशितुल्यानि । क्षेत्रतः-प्रतरस्य असंख्येयभागेऽसंख्येयाः श्रेणयः-प्रतरासंख्येभागवर्त्यसंख्येयश्रेणिगतपदेशपमाणानि बद्धवैक्रियशरीराणि बोध्यानि । अत्र तासां श्रेणीनां विष्कम्भमूचिZ ह्यते । इयं विष्कम्भमुचिः कियत्ममाणा गृह्यते ? इत्याह-अङ्गुलद्वितीयवर्गमूलं तृतीयवर्गमूलेन प्रत्युत्पन्न-गुणितम् । अयं भावः-अङ्गुलप्रमाणे इया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ?) हे भदन्त ! वैमानिक देवों के वैक्रियशरीर कितने कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! ( वेउब्विय सरीरा दुविहा पण्णत्ता) सामान्य तथा वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं । (तं जहा) जैसे (बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य) एक बद्ध वैक्रिय. शरीर दूसरे मुक्त वैक्रियशरीर । (तस्थ णं जे ते बद्धेल्लया तेणं असंखिज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी ओसपिपणीहि अवहीरंति कोलओ, खेत्तओ असंखिज्जा सेढीओ पयरस्स असंखेज्जहभागे) इनमें जो वैमानिक देवों के बद्धवैक्रियशरीर हैं वे सामान्य से असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा इनका प्रमाण असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के जितने समय हैं, उतनी संख्याप्रमाण है और क्षेत्र की अपेक्षा प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों की जितनी प्रदेशराशि होती है उतने हैं। (तासि णं सेढीण विक्ख भई अंगुलबीयवग्गमूलं ५३५९। विष ५५ सभ यु . (वेमाणियाणं भंते ! केवइया वेउध्विय सरीरा पण्णता ?) 3 महत! वैमानि वोना वैठिय शरी। टसi प्रज्ञा थयेai छ ? (गोयमा !) 8 गौतम ! (वेउव्वियसरीरा दुविहा पण्णत्ता) सामान्य ३५मां वैठिय शरीश २ मारना अपामा मायां छ. (तं जहा) २भ है (बद्धेल्या य मुक्केल्या य) : मद्ध वैयि शरी२ मने भी भुत वैठिय शरीर (तत्थ णं जे वे बद्धेल्लया ते णं असंखिज्जा, असंखेज्जाहिं उस्मप्पिणी ओसपिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखिज्जा सेढीओ पयरस्स असं. खेज्जइभागे) भाभा २ वैमानि वाना पद्धडिय शरी। छे ते सामाન્યની અપેક્ષા અસંખ્યાત છે. કાળની અપેક્ષા એમનું પ્રમાણ અસંખ્યાત ઉસપિણી અને અવસર્પિણી કાળના જેટલા સમયે છે, તેટલી સંખ્યા પ્રમાણ છે અને ક્ષેત્રની અપેક્ષા પ્રતરના અસંખ્યાતમાં ભાગમાં વર્તમાન અસંખ્યાત श्रेणियानी रेटी प्रशशि डाय छे. hti छ (तासि णं सेढी णं विक्खं भसूई अंगुलबीइयवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्णं) मडी मा श्रेमिानी
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