Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसत्रे
तिर्यग्योनिकानां पृच्छा गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण पूर्वकोटिरन्तनाथिलचर पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण पूर्वकोटिः । संमूनि परिसर्पस्थळचलपञ्चेन्द्रिय तिर्य कानां पृच्छा, गौतम ! जवन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेणापि द्विचत्वारिंशद
पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की स्थिति जवन्य से तो एक अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहुर्त कम एक करोड पूर्व की है। (भुयपरिमप्प बलपर पंचिदियतिरिकख जोणियाणं पुच्छा-गोवमा ! जहणेणं तत्त उकोसेणं पुषकोडी) भुजपरिसर्प धलवर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों की स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहर्स की है और उत्कृष्ट से एक करोड पूर्व की है। (संमुच्छिममुपरि सप्पथ उधर पंचिदिद्यतिरिवख जोणियाणं पुच्छा - गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत उक्कोसेर्ण बागालीसं वागसहस्थाई) संमि भुजपरिसर्व थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों की स्थिति हे गौतम! जघन्य से तो अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से ४२ हजार वर्ष की है । (अवज्जन्त्तयसंमुच्छि नभुव परिसप्पथलवर पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा-गोधमा ! जणेण वि अंतोमुत्त, उकोसेण वि अंतमुत्तं) अपर्यातक संमूच्छिम भुजपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की स्थिति हे गौतम! जवन्य से भी अन्तर्मुहर्त की है
ન્યની અપેક્ષાએ તેા એક અન્તર્મુહૂત્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી અન્તમુત્ત ન્યૂત એક કરાડ પૂત્રની छे. ( भुयारिसप्पथ उयरपंचि' दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा - गोया ! जहणेणं अतोमुहुतं उक्कोसेणं पुत्र्वकोडी) परिસપ થલચર પ ંચેન્દ્રિય તિય ચ જીવની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ અત मुहूर्त्तनी छे भने उत्सृष्टया मेड रोड पूर्वनी छे ( संमुच्छिमभुयपरिसपथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा - गोयमा ! जहणणं अतोमु हुतं उक्कोण बायालीस वाससहस्साइ) सभूर्च्छिम परिसर्प थंसयर પંચેન્દ્રિય તિય ચ જીવાની સ્થિતિ હૈ ગૌતમ ! જઘન્યથી તે અંતમુત્તની हे ते उत्हृष्टथी ४२ हर वर्ष भेटसी छे (अपज्जत्तय संमुच्छिमभूयप. रिसप्पथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणियाण' पुच्छा - गोयमा ! जगेण वि अंतमुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) अपर्याप्तः सभूमि परिसर्प થલચ પચેન્દ્રિય તિય ચાની સ્થિતિ હૈ ગૌતમ ! જઘન્યની અપેક્ષાએ પણ
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