Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१० औदारिकादिशरीरनिरूपणम् ३७५ एए घेव तिणि सरीरा भाणियव्वा। वाउकाइयाणं भंते! कई सरीरा पण्णता ? गोयमा! चत्तारि सरीरा पण्णत्ता, तं जहाओरालिए वेउठिबए तेयए कम्मए। बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणं भंते कइ सरीरा पगत्ता, गोयमा! तओ सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा वाउकाइयाणं। मणुस्साणं पुच्छा गोयमा! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए वेउविए आहारए तेयए कम्मए। वाणमंतराणंजोइसियाणं वेमाणियाणं जहानेरइयाणं सू०२१०॥ - छाया-कतिविधानि खलु भदन्त ! शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पश्चशरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-औदारिकम् १ वैक्रियम् २ आहारक ३ तैनसं १ ... . असंख्यात नारक है, असंख्यात असुरकुमार हैं यह बात सामान्य रुप से कही गई है विशेषरूप से इनका प्रमाण तो कहा नहीं है। विशेषरूप से इनके प्रमाण विचार तो औदारिक आदि शरीर के विचार होने पर ही हो सकता है। तथा शिष्यों को औदारिकादिक घरीर के स्वरूप का पोध भी हो जावे, इसी अभिप्राय से सूत्रकार भव औदारिक आदिशरीरों का विचार करते हैं- 'काविहा णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता' इत्यादि। - शन्दार्थ-(भते!) हे भदन्त ! (सरीरा काविहा)-शरीर कितने प्रकार के (पण्णत्ता) कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम (सरीरा) शरीर (पंच)
અસંખ્યાત નારકો છે, અસંખ્યાત અસુરકુમાર છે, આ વાત સામાન્ય ૨૫માં કહેવામાં આવી છે. વિશેષ રૂપમાં એમનું પ્રમાણ તે કહેવામાં આવ્યું નથી. વિશેષરૂપથી એમના પ્રમાણુ વિષે વિચાર તે ઔદારિક વગેરે શરીરના વિચાર પછી જ સંભવે છે. તેમજ શિષ્યને દારિક શરીરના સ્વરૂપને બધ પણ થઈ જાય આ અભિપ્રાયથી જ સૂત્રકાર હવે દારિક વગેરે AN२ विष पिया२ रे छ. "कइविहा गं भते ! सरीरा पण्णता" इत्यादि ।
हाय-(भंते) 3 बात ! (सरीरा कइविहा) शरीरे खा मारना (पणचा) daiwi मायां १ (गोयमा) ३ गोयम1 (सरीरा) शरीरे (पंच)
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