Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१३ नारकादीनामौदारिकादिशरीर नि० ४१५. जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियच्वा) नारकों के जो मुक्त वैक्रिय शरीर हैं, वे मुक्त औदारिकशरीर के जैसे समसंख्यावाले हैं। मुक्त औदारिक शरीरों की संख्या सामान्यतः अनंत कही गई है । उतनी ही संख्यावाले मुक्तवैक्रियशरीर नारक जीवों के हैं। (रयाणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता) हे भदन्त ! नारक जीवों के कितने आहारक शरीर होते हैं ? (गोयमा ! आहारगसरीरा दुबिहा पण्णत्ता) गौतम ! आहारक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं (तं जहा बद्धे ल्लया य मुक्केल्लयाय) एक बद्ध आहारक शरीर दूसरे मुक्त आहारक शरीर हैं, सो 'तस्थ णं जे ते बद्वेल्लया तेणं णत्थि ) आहारक शरीर है वे तो नारक जीवों के होते ही नहीं हैं। क्योंकि बद्ध आहारक शरीर चतुर्दशपूर्वधारी मुनियों के ही होते हैं। 'नारक जीवों में चतुर्दशपूर्वधारित्वका अभाव है। इस कारण ये बद्ध आहारक शरीर उनमें नहीं होते हैं । (तस्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओरालिया तहा भाणियव्या) मुक्त आहारक शरीर नोरक जीवों के इतने होते हैं किजितने सामान्यरूप से मुक्त औदारिक शरीरों की संख्या है। अर्थात् मुक्त औदारिकशरीरों की संख्या सामान्य से अनन्त प्रकट की गई
( तत्थ णं जे वे मुक्केल्ल्या वेणं जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा) नारीना के भुक्त वडिय शरीरे। छे, ते भुक्त भौहारि शरी૨ની જેવી સમસખ્યાવાળા છે મુકત ઔદારિક શીરાની સખ્યા સામાન્યતઃ અનત કહેવામાં આવી છે. તેટલી જ સ`ખ્યાવાળા મુકત વૈક્રિયશરીર નારક
वोना छे. (रइयाण भंते! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता) डे लहांत ! ना२४ भवनाला आहार शरीरी होय छे ? (गोयमा ! अहारगसरीरा दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! आहार शरीरों में अहारना हेवामां भाव्यां छे. (तंजा बद्धेल्या या मुक्केल्लया य) शे મુદ્ધ આહારક શરીર અને द्वितीय भुक्त आहार शरीर (तत्थ णं जे वे बद्धेल्लया तेणं णत्थि ) माभां के બદ્ધ આહારક શરીર છે, તે તેા નારક જીવાના હાતા જ નથી કેમકે અદ્ધ આહારક શરીર ચતુર્થાંશપૂર્વ ધારી મુનિઓના જ હાય છે નારક જીવામાં ચતુ શપૂર્વ ધારીત્વના અભાવ છે. આનું કારણુ એ છે કે આ બદ્ધ આહારક शरीर तेमनाभां होतां नथी. (तत्थ ण जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओरालिया तहा भाणियव्वा) भुत आहार शरीरो ना२४ वाने भेटला होय छेडे જેટલાં સામાન્ય રૂપથી મુકત ઔદ્દારિક શરીરની સખ્યા છે. એટલે કે મુકત
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