Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१५ द्विन्द्रियादीनामौदारिकादिशरीरनि० रसर्पिण्पवसर्पिणीभिरपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्येया श्रेणयः प्रतरस्यासंख्येयमागे वासां खलु श्रेणीनां विष्क्रम्मनुचिः असंख्येया योजनकोटीकोटयः । असंरूयेयानि श्रेणिवर्गमूलानि । द्वीन्द्रियाणाम् औदारिकबद्धैः प्रतरोऽपहियते, असंख्ये
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ल्लया य मुक्केल्लया य) एक बद्ध औदारिक शरीर और दूसरे मुक्त औदारिक शरीर (तस्थ णं जे ते बद्वेल्लया ते णं असंखिज्जा) इन में जो बद्र औदारिक शरीर हैं, वे यहां असंख्यात हैं । (असंखिज्जाहिं
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सपिणी ओसपिणीहिं अवहीरंति कालओ) असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के जितने समय होते हैं, उतने समय प्रमाण वे शरीर काल की अपेक्षा हैं । (खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखिज्जइभागे) क्षेत्र की अपेक्षा वे शरीर प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों के प्रदेशों की राशि प्रमाण हैं । यहाँ पर प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान जो असंख्यात आकाशश्रेणियां हैं वे ग्रहण की गई हैं। अब इन श्रेणियों की जो विष्कंभसूचि है उसका प्रमाण कहते हैं (तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाई सेढिवग्गमूलाई) यह विष्कंभसूचि असंख्यात कोटीकोटि योजनों की जाननी चाहिये । इतने प्रमाण वाली विष्कंभसूचि असंख्यात श्रेणियों के मूलरूप होती है। तात्पर्य इसका यह है- एक आकाश श्रेणि में रहे हुए मोहारि शरीर भने जी भुक्त मोहारिए शरीर (तत्थ णं जे से बद्वेल्लया वेणं असंखिज्ज!) मामां ने जद्ध मोहारि शरीरे। छे, ते सर्वे ही असयात थे. (असंखिज्जादि उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवद्दीरंति कालओ) अस ખ્યાત ઉત્સર્પિણી અને અવસર્પિણી કાળના જેટલા સમયેા હાય છે, તેટલા समय प्रभाणु ते शरीर हानी अपेक्षा मे छे. (खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखिज्जइभागे) क्षेत्रनी अपेक्षा ते शरीर अतरना असंख्यात ભાગમાં વમાન અસખ્યાત શ્રેણિઓના પ્રદેશેાની રાશિ પ્રમાણ છે. અહી પ્રતરના અસખ્યાતમા ભાગમાં વત માન જે અસખ્યાત આકાશ શ્રેણિ છે, તેમનું ગ્રહણ કરવામાં આવ્યુ છે હવે આ શ્રેણિઓની જે વિષ્ય ભસૂચિ छे, तेनु प्रमाणु स्पष्ट ठरवामां आव्यु छे. (तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेज्जाओ जोयणको डाकोडीओ, असंखेज्जाई सेटिवग्गमूलाई) मा विष्ठभ સૂચિ અસખ્યાત કાટીકેટ ચેાજનાની જાણવી જોઈએ આટલા પ્રમાણવાળી વિષ્કભ સૂચિ અસખ્યાત શ્રેણિઓના વર્ગમૂલ રૂપ હોય છે. તાત્પર્ય આનુ આ પ્રમાણે છે કે, એક આકાશશ્રેણિમાં આવેલા સમસ્ત પ્રદેશ અસંખ્યાત